गुरुवार, 27 अगस्त 2020

पुनर्जन्म ......
बन्द खिड़की का पट खुला 
मानो जिंदगी को मिली नई उडान
क्योंकि उसका शरीर था निष्क्रिय
  कल्पना को उसकी मिले   नए रंग
अम्बर नीला ,बादल सफ़ेद  बिखरे थे चहुं ओर बहुरंग 
कैसा अम्बर ,कैसा बादल और कैसा इन्द्रधनुष  का है रंग ?
सोचती ही रही  थी  जो इतने बरसों से .आज भर उठे जीवन  में  सप्त रंग |
तन का रंग तो सबने खूब धोया पर ह्रदय में ना झांक पाया कोई
काया बना ली कोरी अपनी पर आत्मा और दिल ना बदल पाया कोई
आतंक,दहशत ,जुल्म ,झूठ ,फरेब के पक्के रंगों  से आत्मा है  सरोवार
काश हम देख पाते झांक कर अंतस में अपने ,काया को निर्मल किया होता एकबार 
  होली के रंग विखराते अद्भुत घटा  और ना होती होली बदरंग
खुद भी मनाते पावन त्योहार ,दुनिया को प्यार के रंग से करते सरोबार 

बुधवार, 26 अगस्त 2020

माँ
माँ तो ईश्वर से प्राद्त्त अनुपम सौगत होती है
गर्भ से लेकर जीवन पर्यत बालक को अपना सर्वस्व देती है
बालक  मुसकाए तो माँ खिलखिलाए, कदाचित रोए तो खून के आंसू रोती है
बालक पर  सर्वस्व न्यौछावर  और उसके इर्द गिर्द ही अपनी दुनिया बुन लेती है
नित नूतन सपनो का जाल, माँ शिशु के वास्ते बुन लेती है
बालक की आँखो से ही माँ सारे ब्रह्माण्ड है देखती
तोतली जुबां से सारी भाषाएँ गुनती और समझती है 
 माँ को  करते  नमन  देवता  और   दुनिया भी सलाम करती है
सिर्फ एक दिन ही उस माँ के लिए दुनिया मदर्सडे मनाती  है 
साल के 365 दिन भी हैं कम ,मगर दुनिया उसकी एहमियत  माँ के कूच कर जाने के बाद समझती है 

  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...