बुधवार, 18 दिसंबर 2013

नौकर पुराण




अलसाई.शिथिल .सपनों में रहती अक्सर वो खोई
अभी -अभी ही तो वो देख रही थी सुंदर सपना
लगातार बजती दरवाजे की घंटी ने था तोडा सपना
बाई का था मरद खड़ा दरवाजे पर यमदूत सा
लाल पान -मसाले से रंगे दांत ,मुख से आती मदिरा की गंध
साहब -मेमसाहब के उड़ गए होश देख उस दानव को
आज हम दोनों ना आ सकेंगे काम पर बताने को था आया
बर्तन का ढेर रसोई में ,बच्चों का स्कूल ,आफिस की फाइलों का अम्बार
 ,नौकरों पर बढती निर्भरता ने बना दिया है पंगु हमारी सबकी जिंदगी को
प्रातः उठते ही ना ज्ञान , ना भगवान बस रहता है सिर्फ बाई का ध्यान
हिन्दुस्तानी औरत तो बस डूबी रहती है सारी जिंदगी इस  नौकर पुराण में        .........

  हम स्वतंत्रता दिवस पूरे जोशो खरोश से मना रहे हैं बेशक हम अंग्रेजों की गुलामी से तो आजाद हो गए हैं धर्म ,जाति की जंजीरों में हम बुरी तरह जक...