बुधवार, 20 फ़रवरी 2013



कब आया मधुमास और कब बीता मधुमास ?
ना दीखी फूलती सरसों ,ना भ्रमर की फूल को थी आस 
ना पीत बसन में थी कोई ,गोरी ना पिया मिलन की आस 
भोजन थाल में भी ना थी पीले ,केसरिया चावल की सुवास
ना फूलता दीखा उपवन में कहीं अमलतास ,सोया था जैसे मधुमास
धरा सूनी ,नभ भी था सूना क्यूंकि बसंत तो बस सिमट रहा है साल दर साल
वन ,उपवन ,बाग़ -बगीचे तो हमने सब समेटकर बना लिए बोन्साई
धरा से आकाश तक सब मानुस ने लिए समेट अपने भीतर अपने साथ
कहीं सिमट ना जाएँ यह त्यौहार भी किताबों और कहानियों की मानिद हमारे साथ
ना पतंगों का जोश दीखता नौजवानों में ,ना बच्चों में उमग पतंग काटने और लूटने की
 कुछ ने तो ओड़ लिया जामा आधुनिकता का ,कुछ पर हावी है परीक्षा का हौवा 
बदल गए हैसब माएने  त्यौहार होने और मनाने के ,बदल गया है नजरिया सबका
भविष्य में किताबों में पड़ा करेंगे की होता था बसंत नाम का भी  त्यौहार 

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