प्यासी धरती ,सूखे अधर ,व्याकुल तन -मन
कातर नैन किसान के है तकते आसमान
मरणासन्न पपीहा नभ को तके आये न उसको चैन
अतृप्त चक्षु मांगे इश्वर से बरसा दो जल दिन- रैन
पपड़ाए अधर और बोझिल काया कहीं न पाए चैन
धरा ,नर -नारी ,पशु -पक्षी सभी हैं आसन्न और बैचैन
अब बरसा भी दो नेह अमृत सा और सबकी रूह पाएं चैन