गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

पापी पेट की खातिर


सर्दी


हाड गला देने वाली सर्दी में ,जब हम गर्म कपड़ों में भी रहे थे ठिठुर
देखा जो नज़ारा ,हड्डियाँ भी हो गयीं सुन्न,मानवीयता होती देखी निष्ठुर
चार अधनंगे बालक मात्र कुछ मछलियों के लिए जाल डाले थे एक गंदेपोखर में
कुछ बालक उस सर्दी में दूंढ़ रहे थे सिंघाड़े की बेल से कुछ सिंघाड़े उस पोखर में
...शीतल जल का सिर्फ एहसास ही कर देता है रोम रोम में सिरहन
गरीबी से लाचार, कुछ सिक्कों की खतिर,या भूख से हो कर बेचैन
थे मजबूर इस पूस माह में, तालाब में भी जाने को पेट की खातिर
चाहें मच्छी,सिंघाड़े खाने हों,या हों वो बेचने को पापी पेट की खातिर
ROSHI....

बुधवार, 19 अगस्त 2015

हिना

     
  आधुनिकता का ऐसा रंग कुछ यूं चड़ा  मेहँदी पर कि अब हथेलियौं पर ताज़ी पिसी हिना से  बने चाँद सितारे पूरी तरह गायब हो गए ,बरसों हो गए किसी महिला के हाथ  पर सिलबट्टे की पिसी मेहँदी से बने चाँद -सितारे देखे हुए
बचपन में जब मेहँदी के कोन नहीं मिलते थे तो हर त्यौहार पर माँ ताज़े हरे मेहँदी के पत्ते पिसवा कर हाथों पर तीली से चाँद -सितारे बनाती थी और कई बार मेहँदी का लड्डू बना कर मुट्ठी भींचने को कहती थीं ......उस मेहँदी का क्या रंग ,क्या खुशबू होती थी नयी पीड़ी को तो पता ही नहीं होगा अब तो हर हाथ पर सुंदर डिजाईन होते हैं पर ,२ दिन बाद उतरी मेहँदी और हाथ का सत्यानाश कर देती है हाथों से खुशबू की जगह जली हुई सी महक आती है जो आजकल रसायन इसमें गहरा रंग लानेके लिए मिलाया जाता है ..क्या करें हम भी वही इस्तेमाल करते हैं ,पत्तों वाली  ताज़ी हिना तो अब गांव में भी कोई ना लगाताहै ....

शनिवार, 15 अगस्त 2015

मेरा भारत महान

                                           स्वतंत्रता दिवस 
स्वतंत्रता दिवस तो मना रहे हैं पर खुद को
बेडिओं से जकडा पा रहे हैं
खुद कि अस्मिता बचाना है मुश्किल
रोज बेतियौं को लुटता पा रहे है
जब होगी नारी सुरक्षित,राष्ट्र का होगा नव निर्माण
फलेगा- फूलेगा देश हमारा ,बनेगा मेरा भारत महान 
                                                         ROSHI....

मंगलवार, 11 अगस्त 2015

धर्मगुरुओं का चुनाव

                           धर्मगुरुओं का चुनाव



बाजार से सामान खरीदते वक्त ,या हो और कोई सौदा सुलफ
रिश्ता जोड़ते वक्त , या दोस्ती करते वक्त हम बरतते हैं पूरी एहतियात
पर ना जाने क्योँ भयंकर चूक कर जाते हैं अपने धर्मगुरु चुनते वक्त
आसाराम ,भोले बाबा ,राधेमां जैसे ढेर से नाराधमी,धोंगियौं को
सौंप देतें हैं अपने जीवन की बागडोर ,उन अधमियौं के हाथ
अपना परिवार ,अपने नौनिहाल ,अपनी स्त्री और पति भी
मुड कर ना देखते उनका अतीत ,वर्तमान उनकी तिलस्मी दुनिया
भेड-चाल में अनुसरण किये चले जाते हैं हम ,मूर्खों की मानिद
यह भी तो बाजार है ,दुकानें हैं इन गुरुओं की जो हमको बेचते हैं
लुभाते हैं अपनी चालों से ,और हम हैं कि बिना जानकारी
बन जाते हैं उनके भक्त ,लुट्वातेहैं अपनी अस्मिता ,अपना बजूद
अपना सब कुछ पर ना कभी छोड़ते उनके हाथों लुटना
यह सिलसिला तो यूं ही चलता रहेगा ना कभी थमा है ना थमेगा
गलत वो नहीं गलत हैं हम जो सदियौं से यूं ही पाप के रहे हैं भागीदार
क्यूंकि गलत धर्मगुरुओं का चुनाव था हमको स्वीकार 
                                                                                               ROSHI

सोमवार, 10 अगस्त 2015

नेक सलाह

                           कुछ देर चुप रहना
दिल ने कहा हमसे कुछ देर चुप रहना सीखो
बोलो कम और दुनिया को परखना सीखो
लगा बड़ा नेक मशवरा ,लगे हाथ अजमाया
इस सौदे में नुकसान कम मुनाफा ज्यादा कमाया
अपनी गुफ्तगू में कभी चेहरों पर पड़े नकाबों से ना हुये थे बाबस्ता कभी
नेक सलाह ने इनसानियत के रंगों से रूबरू करवाया
दिल में कुछ ,जबां पर कुछ और दिमाग में कुछ
जिंदगी के बहुतेरे रंगों का आईना दिखाया 
                                                                       ROSHI

शुक्रवार, 7 अगस्त 2015

माए से उपजा मायका

                                    लाडली 
माई यानि माँ से ही उपजा शब्द मायका
माँ ही चिडया कि मानिद समेट लेती है अपने बच्चे
अपने लाडलों के साथ ही जीती और मरती है
बेटियों में बसती है उसकी जान , जीती है उनमें अपना आधा -अधूरा बचपन
स्वेटर की तरह ही तो रोज बुनती और उधेरती है नित नए सपने
व्याह दी जाएँ जब उसकी बेटियां तो सिर्फ आवाज़ से समझ जाती है
अपनी शहजादियों का दावानल ,उनकी पीड़ा और अब बदल जाते उसके स्वप्न
अब दूंदने में लग जाती माँ एक अदद अलादीन का चिराग
मिलते ही जिन्न से मांगे वो सिर्फ और सिर्फ अपनी लाडली का सुखमय जीवन
तभी तो माँ से ही होता मायेका और माँ से ही जीवन 

शनिवार, 4 जुलाई 2015

दिल


दिल जैसी बड़ी अजीब शै है खुदा ने खूब बनाई
जिस्म ,रूह सभी पर है इसका बखूबी कब्ज़ा भाई
यह खुश तो सभी अंगों पर रहती है बाहर खूब छाई
दुखी दिल तो सारी कायनात के सुकूं भी निराधार हैं भाई
आँखों को भी यह कमबख्त वही है दिखता जो खुद देखना चाहें है भाई 
तन के घावों का उपचार तो हकीम -वैध कर देवे
पर दिल की चोटों का नहीं है धरा पर कोई इलाज है भाई
बड़ी कीमती ,बेमिसाल सौगात बक्शी है ईश्वर ने हमको
इस दिल की मुकम्मल देखभाल करो मेरे भाई

  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...