आधुनिकता का ऐसा रंग कुछ यूं चड़ा मेहँदी पर कि अब हथेलियौं पर ताज़ी पिसी हिना से बने चाँद सितारे पूरी तरह गायब हो गए ,बरसों हो गए किसी महिला के हाथ पर सिलबट्टे की पिसी मेहँदी से बने चाँद -सितारे देखे हुए
बचपन में जब मेहँदी के कोन नहीं मिलते थे तो हर त्यौहार पर माँ ताज़े हरे मेहँदी के पत्ते पिसवा कर हाथों पर तीली से चाँद -सितारे बनाती थी और कई बार मेहँदी का लड्डू बना कर मुट्ठी भींचने को कहती थीं ......उस मेहँदी का क्या रंग ,क्या खुशबू होती थी नयी पीड़ी को तो पता ही नहीं होगा अब तो हर हाथ पर सुंदर डिजाईन होते हैं पर ,२ दिन बाद उतरी मेहँदी और हाथ का सत्यानाश कर देती है हाथों से खुशबू की जगह जली हुई सी महक आती है जो आजकल रसायन इसमें गहरा रंग लानेके लिए मिलाया जाता है ..क्या करें हम भी वही इस्तेमाल करते हैं ,पत्तों वाली ताज़ी हिना तो अब गांव में भी कोई ना लगाताहै ....
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