पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण अंधाधुन्द किये जा रहे हैं
अपने संस्कार ,परम्पराएं ,आदर्शों को तिलांजलि दिए जा रहे हैं 
बेअदबी,भोंडा फैशन ,और परिवार का तिरस्कार किये जा रहे हैं 
बच्चों को सिर्फआधुनिकता का जामा पहनाकर खुद को खुश किये जा रहे हैं 
बेटियों को नामाकूल दौर में दौड़ने की जगह ,संस्कारों को रोपना भूलते जा रहे हैं 
चाँद पर पाँव रखना अकल्पनीय है,पर हम धरती पर पाँव टिकाना भूलते जा रहे हैं 
जड़ों से जुड़ना हर समाज के लिए होता बेहतरीन ,जिसको हम भूलते जा रहे हैं 
तरक्की,विकास होता जीवन में आवश्यक ,उसकी हम बड़ी कीमत चुका रहे हैं 
कल्पना से था परे विदेशों में खुलते ओल्ड ऐज होम की परिकल्पना  हिंदुस्तान में 
 प्रतिस्पर्धा में हम उनसे कंही आगे निकल रोज नया वृद्ध आश्रम खोलते जा रहे हैं 
 खुद को समेट लिया संकुचित दायरे में ,बच्चे परिवार से कोसों दूर होते जा रहे हैं