शनिवार, 24 सितंबर 2011

नव योवना

व्याह कर आई वो नव्योवना ,उतरी डोली से सजन के अंगना 
नए सपने ,नयी उम्मीदे ले कर उतरी वो पी के अंगना 
अपनी गुडिया ,सखी-सहेली ,ढेरो यादे छोड़ आयी बाबुल के अंगना 
माँ-बाप की दुआएं ,भाई -बहनों का प्यार आशीर्वाद और लाज का गहना 
बस ये ही दहेज़ था उसके दमन में और थी माँ की सीख 
सुख हो या दुःख,तुमको है उसी ससुराल में मिल कर रहना और सहना...........  

गुरुवार, 22 सितंबर 2011

आतंकवाद की समस्या

अभी आज ही अखबार में छपा था, 
किया कुछ नासमझों ने धर्मग्रन्थ का अपमान 
क्यूँ नहीं करते हैं दुसरे मजहब का सम्मान 
क्यूँ दूसरे मजहब का नहीं करना चाहिए सम्मान 
हों वो चाहे हिन्दू, सिख, इसाई या मुस्लमान, 
खून उबलता है, निकाल लेते हैं फ़ौरन गैर कानूनी सामान 
क्यूँ नहीं ज़रा भी समझते की सभी धर्म हैं एक समान 
ईशवर तो एक ही है क्यूँ है बिखर गयी इसकी संतान 
सभी धर्म, हर मजहब, और पंथ बनाता तो यही है इन्सान 
क्यूँ न हम सिखाएं बच्चों को की करें वो हर धर्म का सम्मान 
गर चाहें हम तो दिखा दें विश्व को सर्व धर्म का सम्मान करता है हिंदुस्तान 
फिर क्यूँ करता है यह दंगे, तोड़ फोड़ , बर्बादी और घमासान ? 


जर्जर काया

अभी अभी गई किसी विधवा बूढी माँ की अर्थी 
जब तक जिंदा रही वो तड़पती रही सिसकती रही 
पति को जो जवानी में थी खो चुकी पर बेटे के सहारे जीती रही 
मरियल काया, सफ़ेद साड़ी, समाज के भेड़ियों के बीच जिंदा रही 
किस तरह से काटा होगा दिन और कितनी भयावह होगी उनकी रातें मैं सोचती रही 
पुत्र प्रेम में वो जीती रही, पुनः पुनः रोज़ मरती रही 
पुत्र भी न निकला कम पर अब पुत्रवधु के सपने संजोती रही
पुत्रवधु भी थी आधुनिक, उसके अपने पुत्र के साथ दम घोटती रही 
कितना दुःख विधाता ने लिखा था उसकी फूटी किस्मत में सहती रही 
पर आज हो गयी सब बंधनों से आज़ाद, आत्मा उनकी निर्वाण को प्राप्त हो गयी 

अपने पराये

सभी आये,सभी ने सराहा ,कुछ ने मन से कुछ ने बेमन से 
अब कुछ कुछ पहचानने लगे है ,चेहरे कौन अपने कौन पराये 
दिखाते है ख़ुशी ,ढकते हैं जलन पर दिख ही जाते हैं फफोले चेहरे पर 
क्यूंकि चेहरा और आँखें ही तो आइना हैं अंदरूनी 
यह कमबख्त कितना भी छुपाओ राज़ खोल ही देते हैं 
सोचो ज़रा उस भगवन का करो शुक्रिया अदा
कितनी खूबसूरती से फिट किया है लाइ डेटेक्टर 
इन्सां को भी न पता 

माखनचोर


ब्रज का दुलारा है ,सखियन का प्यारा है
यशोदा की अंखियन का तारा ,,वो है हमारा
वृषभान दुलारी का प्राण-प्रिय ,नन्द का दुलारा है
वृज का रखवारा दुष्टों का तारान्हारा है ,
किन नामो से उसको पुकारे ना जाने यह जी हमारा है?  
गोवर्धनधारी ,गिरधारी ,माखनचोर और कृष्ण मुरारी 
असंख्य नाम है उसके ,सहस्त्र्रूप्धारी 

सोमवार, 12 सितंबर 2011

आतंकवाद

बम का धमाका करना, आतंक फैलाना 
कितना आसन लगता है, हमारे नौजवानों को 
उपर बैठे उनके आका, पथ-भ्रष्ट करते इंसानों को
कितनी मांगें होती हैं सुनी, कितनी कोख उजडती 
ये रत्ती भर भी न होता है, गुमा उन बदमाशो को 
रोते- कलपते अनाथ बच्चे, अपनों को खोने का गम
हिला भी न पाता है, आत्मा और जमीर हैवानो का 
कभी भी न सोच पाते, ना ही सोच पाएंगे ये बेदर्द दरिन्दे 
इन्सान कहना भी इंसानियत की बेइज्जती करना होगा,
इन बहशियो को 
इन खूनी आतंकिओं की ना है कोई ,जात ना है बिरादरी 
ना है कोई अपना, ना माँ -बाप ना ही कोई रिश्तेदार 
इन्होने तो बस आतंक, बम, हत्या, खून से ही कर ली है नातेदारी 
अरे, बेबकूफ कभी तो बनाकर देखते किसी को अपना 
कुछ भी ना याद आता, भूल जाते कहर वरपाना-गर बना लेते सबको अपना ? 
ना होता कहर इतना, गर देखते वो भी सुंदर सपना, और किसी को कहते वो भी अपना ? 

शनिवार, 10 सितंबर 2011

दुखवा मै का से कहूँ ?

किसी ख़ुशी में भी, दर लगा रहता है 
नजर को जाती है फ़ौरन ख़ुशी भी 
जब कभी पंख लगाकर उड़ना चाह हमने 
आसमा में ढेरो गिद्द-बाज मडराते नजर आये 
फ़ौरन उड़ना भूल घोसले में बसेरा कर लिया 
जब कभी चाहा पाकछिओं की तरह हमने चह-चाहना   
गंदे- भद्दे अनर्गल भाषण सुने की बोलना भूल गए 
जब कभी चाहा स्वच्छंद विचरण यहाँ और वहां 
इतनी बंदिशे, इतनी यंत्रनाये मिली की चलना भूल गए 
जब चाहा खुल कर हँसना, बोलना बतियाना 
बंद कर दी गई, जुबान  की शब्दों का अर्थ भूल गए....
आखिर लड़की को ही इतनी बंदिसे क्यूँ ? 
क्यूँ  आज भी समाज उनकी खुशियों पर अंकुश 
लगता है चाहे बह महिला हो या पुरुष लेकिन 
आज भी सबाल है स्त्री जीवन ? 

मन की बेचैनी

मन पता नहीं कहाँ रहता है ? 
हर बक्त कुछ दूंडता रहता है 
अबूझे सवाल पूछता रहता है 
हर पल आशंकाओ में घिरा रहता है 
कुछ बुरा न हो इसी दर में जीता रहता है 
क्यूंकि हो चुका है सब कुछ घटित बुरा उसके साथ 
अब और कुछ न हो इसी में डूबा रहता है 
क्या करे वो, कैसे संभाले इस दिल को 
कुछ भी न होता जबाब है उसके पास 
ये तो बस डरता रहता है, परेशा करता रहता है ..


हरियाली तीज

Pakistani Mehndi Designs
प्यासी धरती, झुलसा तन 
शीतलता देता है बरसता सावन 
हरियाली तीज आने को है सन्देश देता  है सावन
दूर देश बैठी बेटी का आने को है बेक़रार मन 
भैया को पीहर जाकर बांधुंगी राखी है यह मन 
जो न जा सकीं पीहर, ससुराल में हैं तड़पता उनका मन 
माँ भी संजोती सपने और जोहती है बाँट हर छड 
आती होगी लाडो, झूलेगी झूला, रचेगी मेहंदी 
और आने से बेटीयों  के गुलजार होगा सूना घर आँगन..... 




























































मंगलवार, 6 सितंबर 2011

समय चक्र

जीवन के पचास वर्ष पूरे कर लिए सोंच कर होती है हैरानी 
समय चक्र कितनी तेजी से घूमता है बदल देता है जिन्दगी की रवानी 
जिन्दगी में -भी पचास वर्षो में बदला बयां करनी है अपनी जुवानी 
कब बचपन गुजरा बन गए माँ फिर सास और बन गए अब नानी 
हमारी जिन्दगी में आयीं दो नन्ही परियां उनको 
पाला-पोसा होती है हैरानी 
फिर आया हमारा लाडला राघव, सिखाई जिसने हमको जीने की नई कहानी 
विगत दस- पंद्रह बर्षो में उलट- पलट गई जिन्दगी की साडी रवानी 
माँ को खोया, बीमारी, डिप्रेशन और मुसीबतों ने भुला दी थी जिन्दगी की कहानी 
पहले था माँ का साया, तो कभी भी न महसूस होने दी उन्होंने कोई परेशानी 
सबको सब सुख होते नहीं नसीब यही है  हमारी जिन्दगी की एक छोटी सी कहानी 
हमारा साथ दिया पापा ने बहन दोस्तों ने और बच्चो ने 
थाम कर जिनका हाथ कभी भी न रुकी हमारी जिंदगानी 
आगे समंदर था गहरा पर हमारी कश्ती में भी थी पूरी रवानी 
धीरे- धीरे, रफ्ता-रफ्ता किनारे की ओर बढ रही है हमारी जिंदगानी 

मेरे दोस्त तेरे नाम

५० का आंकड़ा कर लिया है तुमने भी पार 
ईश्वर को यूँ ही दया बनी रहे तुम पर अपार 
हम दोनों को शायद इश्वेर ने एक साथ ही दिया होगा आकर 
कई समानताएं कई बातें आती रहीं हैं बार- बार
मै और तुम दोनों यहीं खेले और पले- बढें और सुख पाए 
माँ- पिता की छत्र-छाया और जो सुख चाहा वो सभी पाए 
किस्मत में था एक शहर में रहना साथ दोनों का वो भी निभाएं 
हम दोनों ने ही ईश्वर प्रदत्त, एक- एक होनहार पुत्र रत्न पाए 
माँ भी हम दोनों की जो घर से निकली, दुर्घटनावस् लौट ना पायीं 
पर आज हम दोनों पर ही ईश्वर ने छोड़ी जिम्मेदारिया- जो हम जा रहें हैं निभाए 
मै पापा के पास और तुम्हारे पास पापा देखो है कितनी समानतायें 
ईश्वर नवाजे तुम्हें ढेर सी खुशियाँ, और दूर करे सारी बिप्दायें 
कुदरत ने दी हैं हम दोनों की जिन्दगी में बहुत सी समानतायें 
इन्सान कुछ भी न कर सकता है मंगते है हम यही दुआएं 
जैसे अब तक निभाया है यह रिश्ता वैसे आगे भी हम-तुम निभाएं 
जितनी भी जिन्दगी काटी अच्छी कटी और आगे भी सुंदर सजाएँ ...

शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

रीतिरिवाज

जब हुए विवाह के लायक तो भी रीतिरिवाज न बदले 
क्यूंकि तब सुना था माँ के मुह की लड़की के हालात न बदले
वही दान, वही दहेज़, माँ बाप को चाहिए और लड़के को रंग गोरा 
पहले न था शिक्षा पर इतना जोर पर व्याह पर खर्च था पूरा 
लड़की को दिखाना, उसकी नुमाइस सभी कुछ भी न था बदला 
पसंद आ गई तो रिश्ता पक्का वरना खाया पिया और चले 
लड़की के दिल दिमाग में जरा भी झांक कर न देखा की उस पर किया गुजरी 
बेचारी कितनी तकलीफ मानसिक व्यंग से वह है गुजरी
पर लड़के, उसके सम्बन्धी , माता पिता उनका इससे किया वास्ता 
लड़का तो ऊँचे दाम पर बिक ही जायेगा आज नहीं तो कल कोई दाम
दे ही जायेगा. 
हालात आज भी बही है बिल्कुल भी न बदले
बाप को चाहियें रुपया, बेटे को रंग गोरा और पड़ी लिखी 
नुमाइस पहले भी होती थी आज भी होती है और होती रहेगी 
आए खाया पिया, देखा और चले जरा भी न दिल धड़का 
बेचारी लड़की आज भी बहीं है उसी लीक पर चल रही है
उस मासूम के लिए क्यूँ नहीं दर्द उपजा ? क्यूँ, क्या कभी उपजेगा ? 
नहीं शायद कभी नहीं क्यूंकि वो तो यहीं यातनाये 
कवच झेलने के लिए जन्मी हैं इस संसार में और 
यह समाज न बदला न ही कभी बदलेगा 
क्या नहीं बदल पायेगा ये समाज ?
जो था कल बही है आज क्या इसको कहते है हम समाज


गुरुवार, 1 सितंबर 2011

अर्धशतक किया है आज मैंने पूरा

जीवन का अर्धशतक किया है आज मैंने पूरा 
लगता नहीं है की पचास का आंकड़ा छू लिया है पूरा
पीछे मुड़कर देखा तो पाया, कि अभी तो हम बच्चे थे 
क्यूंकि हर वक्त माँ पिता का वरद हस्त था हम पर पूरा
माँ तो हमेशा बना कर रखती थीं ,अपना बच्चा हमको पूरा
फिर जिन्दगी उलझ गई छोटे- छोटे बच्चों को पालने पोसने में 
उनकी शिक्षा, उनकी जिन्दगी के अहम् फैसलों को किया पूरा
दो बेटिओं के बाद पाया राघव (बेटा) को जिसने जीवन को हमारे संवारा  
फिर खोया माँ को, लगा जिंदगी को खुशिओं का साथ न था गवारा 
जिन्दगी फिर दौड़ाने लगी पटरी पर क्यूंकि जाने बाले के साथ न जाया जाता 
समय चक्र का पहिया दौड़ रहा था और हमको तनिक न पता चला 
जब पता चला तो पाया कि हम आधी से ज्यादा यात्रा कर आये 
अब थोडा जीवन बाकी है आशा है सुख से कट जाये 
हम वो छडं न भूल पाएंगी जब प्रभु ने दिया एक अनुपम उपहार 
आन्या (नातिन) से पाया मैंने नव निर्मल रिश्तो का संसार 
पचासवी तो मना रही हूँ सबके साथ 75 वी0 भी शायद मना ले आप लोगो के साथ
ये सब कुछ है अब परम पूज्य ठाकुर जी के हाथ ....

  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...