मंगलवार, 31 जुलाई 2012

सावन की मस्ती

कब आया सावन ,कब बीता सावन जरा भी ना हुआ इसका गुमां
कहीं भी ना दिखी नवयौवना बढाती झूले की पींगे ,गाती कजरी बनती अद्भुत समां 
बरसते ,लरजते कारे -कारे बदरा भी जैसे भुला ही बैठे मदमस्त आसमां 
दीखे ना कोई प्रेमी युगल बतियाते ,भीगते इस मधुर सावन में 
सब कुछ हो गयी बिसरी बातें ,सावन रह गया कवियौं की कल्पना में 
हरियाला सावन था सिमट गया बस कुछ पन्नो में और रह गया था अतीत की कथाओं में 
अब न सुनाई पड़ती कजरी ,ना सावन के गीत ,ना सुनती पपीहे की आर्तनाद 
क्यूंकि अब हमने ना बचाए पेड़ -पौधे ,ना बाग़, ना बची वो हरितमा 
बना दिया है कंक्रीट का जंगल चहुँ ओर  व्यथित और परेशा नर -नारी  
ना दिखते छप -छप करते बालक ना सावन का आनंद लेते नर -नारी 

बुधवार, 25 जुलाई 2012

आइना

कितने झूठ ,कितने फरेब  कोई कब तक कर सकता है ?
शायद उम्र भर ......और अब उसको भी लगने लगा है 
की शायद वो है ही गुनेह्गर इन सब हालातों की वो है 
मुजरिम ,या शायद वक़्त खेल रहा है कोई खेल उसके साथ 
पर जब कोई बात बार -बार दोहराइ जाती है लगातार 
तब पत्थर पर भी पड़ जाती है दरार ,.........
स्याह को सफ़ेद और सफ़ेद को स्याह तो दिखा ही देती है यह दुनिया 
जब राम को दिखाया दुनिया ने आइना सीता के दुश्चरित का 
तो वो भी ना देख पाए सीता के सतीत्व को ,उसके प्रताप को 
कुब तक ? आखिर कब तक चलता रहेगा यह अत्याचार ?????????

























































































सोमवार, 23 जुलाई 2012

मेरे जिगर के टुकड़े





बच्चे कितनी जल्दी बड़े हो जाते हैं यह आज समझ आया
जब हमारे बच्चे ने हमको नेतिकता का पाठ पड़ाया 
वो सारी बातें जो हम थे रहे सिखाते उसको जिन्दगी भर 
एक पल में ही उसने उनको अमल में लाकर कर दिखाया 
फख्र है हमको तुम परअब जाकर महसूस हुआ बच्चों  
हमने यूँ ही नहीं अपना जीवन व्यर्थ है गंवाया 
  

रविवार, 22 जुलाई 2012

तीज का मनोहारी उत्सव ,

तीज का मनोहारी उत्सव ,भर देता है हर युवती के मन में कुछ अनूठी उमंग
साजन के प्यार में खिल उठता है उसका अंग और प्रत्यंग 
 बरसता सावन जैसे छेड़ देता है काया में उसकी सरस मृदंग 
सावन के झूले बड़ा देते हैं ह्रदय की उठती गिरती सांसो की सरगम 
यह सतरंगी त्यौहार है ही हमारे देश की अद्भुत रीति -रिवाजों की शान 
अल्हड ,बूढी और जवान सभी मनाएं इसको भिन्न -भिन्न रूपों में सजकर 
धानी लहरिया ,की ओढ़ चुनर सजे गोरी पहन हाथ भर भर चूड़ी और पाँव सजे महावर 

सोमवार, 9 जुलाई 2012

बदलती वयार

बिसरा दिया है मेघों ने भी सावन में बरसना
सावन के झूले भी अमुआ की डार पर ना दिखते हैं अब 
बच्चियो की मस्ती ,मेहँदी के पत्तों पर आपसी खटपट 
सब हो गयी हैं शायद गुजरे ज़माने की बातें  अब 
ना कानों में पड़ती है किसी भी गलियारे से चूडियो की खनखनाहट 
वो मेहँदी से रची हथेलियाँ अब ना दिखती हैं गावं ,कस्बो में 
शायद बढता स्कुल ,आफिस का दबाब दबा रहा है पुरानी परम्पराएं 
सुहागिनों का नैहर भी छूट रहा है त्यौहार पर जाने से 
परंपरा अनुसार तीज पर बाबुल घर लाये और भाई राखी बंधवा कर ससुराल पहुचाये 
 बदल गए हैं सब मायने वक़्त ,सहूलियत के अनुसार त्यौहार मनाने के 
अब कौनसा नया परिवेश बदल देगा सारे के सारे ख़ुशियों के पैमाने 

रविवार, 8 जुलाई 2012

वैदेही की व्यथा

आज दिव्या शुक्ल जी का लेख देखा उसी लेख पर वैदेही के लिए कुछ भाव .............
 वैदेही का तो हर युग मैं जनम ही हुआ है नारी जीवन का संताप भोगने वास्ते 
कभी जन्मी वो जनकसुता बनकर और पाए घोर कष्ट भार्या राम की बनकर 
जन्मी थी वो राजकुल में और व्याही भी गयी रघुकुल में सहचरी वो राम की बनकर 
पांचाली भी जन्मी थी राजकुल में और पाया था अर्जुन सा राजकुमार स्वयंवर में उसने 
पर वह री किस्मत ? विधि की लेखनी ने उल्टा दिया सारा का सारा किस्मत का लेखा -जोखा 
व्याही एक पति को ,और भोग्या बनी पांच पतियौं कीकुदरत का खेल निराला 
कितने ही किस्से ,कहानी भरी पड़ी है इतिहास में हमारे हर युग की वैदेही की 
रूप अनेकों पर वैदेही तो हर युग ,काल में रही है सिर्फ भोग्या ,शापित और अबला 
जब ,जैसे,जिस भी रूप में पाया है दारूण कस्ट उसने सदेव वैदेही रूप  में जनम्कर 

शनिवार, 7 जुलाई 2012

जिन्दगी की अजब कहानी




किस्मत से बढकर कुछ नहीं है मिलता देख लिया है जिन्दगी की आपा -धापी में
सब कुछ था अजमाया हमने बस समझ ये ही आया इस जिन्दगी की दौड़ा -भागी में 
सारी अक्ल ,सारी होशयारी बस रह जाती है धरी की धरी इस जिंदगानी में 
बड़े से बड़े बन्दों को देखा है मिलते खाक और मिटटी में इसी जिन्दगी में 
जो  लिखा कर आये है तकदीर अपनी वो ही पाते हैं सब सुख जिन्दगी में 
अक्सर देखा है बहुत से कर्मयोगी कर्म करते है पूरा इस जिंदगी में 
पर कुछ भी ना कर पाते हैं हासिल सारी की सारी जिंदगी में 
इस को भाग्य का लिखा कहा जाये या कहें किस्मत की बुलंदी 
बिना कुछ करे भी वो सब कुछ पा जाते हैं जिन्दगी में 
  

मंगलवार, 3 जुलाई 2012

जीवन

जिन्दगी का पहिया इतनी तेज़ी से रहा था भाग
हम सोच रहे थे कि हमने तो इसको बाँध रखा है मुटठी में 
पर वो तो खिसक रहा था मुट्ठी में बंद रेत की मानिद 
कब हो गया हाथ खाली हमको पता ही न चला 
और समेट भी ना सके एक भी कण उस रेत का 
जो समय जाता है गुजर लाख चाहो तो भी न पा सकोगे ऊम्र भर 
क्योँ नहीं समझ पाया मानुस वक़्त रहते यह गणित
बस फिर बटोरता रहता है रेत के टुकडो को जीवन भर 

  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...