ग़ुरबत की जिन्दगी बेहद दुष्कर है
यह सारी खूबियाँ निगल जाती है
परोस देती है सिर्फ खामियां भीतर तक की
कुछ बेहतर बचता ही नहीं है आपके भीतर
आपकी क़ाबलियत ,रूप -रंग ,सब परे हो जाता इसके अन्दर
अवगुण तत्काल बदल जाते गुंणों के समंदर में
गलतियाँ चुप जाती तत्काल गुणों की चाशनी में
सूरमा भी चाटते धूल जब विपरीत चलती है बयार
कंगाली में बेजान हो जाता दिमाग और सुन्न हो जाता शरीर
--रोशी