सुख के पीछे पीछे भागते छोड़ बैठते हैं कुछ अनमोल पल
शायद इससे बेहतर कुछ मिले इस चाह में गँवा बैठते हैं सब
जितना मिले समेट लो दामन में अपने तो रहोगे सदेव खुश
यह मृग मरीचका तो ऋषि मुनियों को भी दौड़ाती रही है बरसों से
अतृप्त ,असंतुष्ट तो रहा है मानव सदेव आदिकाल से
विधना ने जन्म के साथ ही कुंडली में लिख भेजे सुख -दुःख
शांत भाव से जियो जिन्दगी, नियति को स्वीकार रहो सदेव खुश
--रोशी
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