हर लम्हा इन्सान की फितरत के बदलते ढंग
काश हम देख पाते झांककर दिल के अंदर
क्यूंकि बहां तो दिखते ढेरो उल्हाने और बर्बाद ज़माने के रंग
जीना हो जाता मुहाल और सामाजिक ढांचा हो जाता भंग
भाई- भाई न रहता, पति- पत्नी और बच्चे
प्रेम बत्सल्या, दोस्ती के दिखते अदभुत रंग
अच्छा ही हुआ जो इस दिल को ढक दिया इश्वेर ने
बरना तो खुद इश्वेर ही न संभाल पाता
इंसानी फितरत के बदलते हर पल नए रंग ढंग