होली के बिखरत रंग हैं चहु ओर छाई, आई फागुन है आई
सजन को सजनी से, मिलने की साथ में है आस बंधाई
ब्रज में भयो शोर, गलियन में चहूँ ओर है रंग बिखराई
बरसाने की ग्वालिन ने फिर से है लट्ठो पर है तेल फिराई
ब्रज में बरसाने में गलीयो में नगरो में सर्वत्र उल्लास छाई
हर छोरा कान्हा और चोरी राधा का जैसे है रूप पाई
दोस्त- दुश्मन, नर- नारी सब आपस में गले मिल है रंग लगाई
धरती और अम्बर सभी जगह है रंग छाई
देखो आई होली आई .....
1 टिप्पणी:
होली के मूल रंग हैं ये।
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