शनिवार, 30 अप्रैल 2011

होली की यादें

होली के बिखरत रंग हैं चहु ओर छाई, आई फागुन है आई 
सजन को सजनी से, मिलने की साथ में है आस बंधाई 
ब्रज में भयो शोर, गलियन में चहूँ ओर है रंग बिखराई 
बरसाने की ग्वालिन ने फिर से है लट्ठो पर है तेल फिराई 
ब्रज में बरसाने में गलीयो  में नगरो में सर्वत्र उल्लास छाई 
हर छोरा कान्हा और चोरी राधा का जैसे है रूप पाई 
दोस्त- दुश्मन, नर- नारी सब आपस में गले मिल है रंग लगाई 
धरती और अम्बर सभी जगह है रंग छाई 
देखो आई होली आई .....

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

होली के मूल रंग हैं ये।

  जिन्दगी बहुत बेशकीमती है ,उसका भरपूर लुफ्त उठाओ कल का पता नहीं तो आज ही क्योँ ना भरपूर दिल से जी लो जिन्दगी एक जुआ बन कर रह गयी है हर दिन ...