मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

जिन्दगी का फलसफा


सब कहते हैं की बीति बातें बिसार दो ,और आगे की सुध लो
पर भूलना क्या होता है इतना आसा ?
जिनको था दिल और दिमाग ने इतना चाहा
एक ही झटके में टूटा पूरा का पूरा भरम का जाल
खुल गयी आंखें ,मिला जिन्दगी को सबक .और नए ख्याल
पर किससे  कहें ? क्या कहें ,बचा न था कुछ भी बाकी
स्वयंम सिर्फ स्वंयं पर ही करो भरोसा यह ही है जिन्दगी का फलसफा
माँ -बाप तो हमेशा ही रहे थे सुनाते जिन्दगी के खाए धोखे
पर हम मूर्ख समझते रहे की घुमा देंगे जादू की छड़ी
बना देंगे रिश्तों ,जिन्दगी सब को आसां
पर अब पता चला की हो ही गए थे हम फेल
हमारी किस्मत में न था समझ पाना इन रिश्तों का फलसफा
कई लोग तो बिना कुछ करे धरे भी पा जाते हैं सभी का प्यार
पर हम सब कुछ कर के भी ना पा सके मर्जी से जीने का अधिकार




शनिवार, 3 दिसंबर 2011

भ्रम जाल




अवसाद गहन अवसाद में घिर गए थे हम
अपनों  ने ना  दिया होता सहारा तो मर ही गए थे हम
अपनों ने ही धकेला था हमें अवसाद की गहरी खाई में भ्रम जाल
और अपनों ने ही निकाला,और नेक सलाह सुझाई
मानसिक संतुलन था गड़बड़ाया और था दिल घबराया
अँधेरा ही अँधेरा था और देता था न कुछ दिखाई
रिश्तों की गुत्थी उलझी इतनी की सिरा भी न आता पकडाई
 क्या करते जीना भी तो यही है ,मकडजाल में आत्मा भी घबरायी
हम खुद ही इसके जिम्मेदार हैं बात यह ही अब समझ आई
न करते हम अपने आसपास इतनी गंदगी इकठा करते रहते सफाई
सच्चे दोस्त,सगे ,सम्बन्धी और अपनों की इसी अवसाद ने पहचान कराई
अब न घिरेंगे इस भंवर में जीने की है कसम खाई
पर किनारे तक आते -आते पिछली सारी भूली बिसराई
फिर तेयारी कर ली थी हमने रिश्तों में उलजने की
दावानल में घिरने की ,अब फिर से है बारी आई
कोई न है विकल्प इस माया जल का बहु भांति है हम अजमाई

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

नकली रिश्ते

जिन्दगी ने बहुत कुछ सिखाया हमको यक़ीनन
ना रहे बहुत ज्ञानी ,ध्यानी और ना ही किया बहुत चिंतन
पर धोखे ,विश्वासघात और खंजर क्या- क्या ना पाई तडपन
पर अब जाकर समझ आई इन्सान की असली पहचान
जब कीड़े ,मकोड़े ना बदल सकते कुदरतन अपना स्वभाव
चोट पहुचना ,डंक मारना उनका इश्वर प्रदत्त स्वभाव
हम इन्सान होकर क्योँ भूल जाते है सबका विचित्र स्वभाव
सारी     जिन्दगी उसको स्वानुकूल बनाने में ही लगा देते हैं
और फिर हम होते हैं परेशां ,दुखी ,अवसादग्रस्त और वेचैन
क्योँ ना रहे दूर  और ना लाये होते  उसको दिल के करीब
विष वमन,कपट ,छल,द्वेष ,और जलन ये ही था उसका स्वभाव
 समझाया था दिल को वक़्त ने शायद बदला हो उसका व्यव्हार
पर व्यर्थ ,निरर्थक थी हमारी सोच जो ना देख सकी दिल के आर पार

  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...