गुरुवार, 27 जनवरी 2011

Roshi: माँ

Roshi: माँ: "माँ के आने का कर रही थी मैं इंतजार मन में था आनंद और उनके लिए प्यार अभी सुबह माँ से हुई थी फ़ोन पर बात जल्दी आओ , मन नहीं लग रहा ..."

माँ

माँ के आने का कर रही थी मैं इंतजार
मन में था आनंद  और उनके लिए प्यार
अभी सुबह माँ से हुई थी फ़ोन पर बात
जल्दी आओ , मन नहीं लग रहा  ,कहा था बार- बार
पता नहीं क्यों मन में थे अनेको विचार ?
नव वर्ष पर भी मन था उदास ,और परेशा
बताया था यह भी माँ को, कि मन नहीं लग रहा है बार- बार
सारे  अशुभ संकेत ,लक्षण हो रहे थे लगातार
माँ , पिता, और बच्चे गए थे सुनने भागवत कथा का पाठ
सबको विदा कर रह गए हम अकेले
कुदरत दे रही थी अनहोनी का संकेत
क्यों नहीं हम समझे ? और मन रहे थे बहलाते
माँ ने बच्चों को हॉस्टल छोड़ा, और वापिस घर को रुख मोड़ा
जहाँ था काल कर रहा, उनका इंतजार
आया , झपटा और ले गया माँ को अपने साथ
अरे ,,,,,, अभी तो हुई थी टेलीफ़ोन पर उनसे बात
मन तो मानता ही नहीं था पर होनी को था यही स्वीकार
चील जैसे झपट्टा मारती वैसे था काल ने मारा
माँ क्या गयी जैसे जिन्दगी गयी ठहर
पर समय तो सारे घाव भरता है
जिन्दगी चल पड़ी फिर उसी राह पर
एक मित्र को भी इसी तरह एक्सीडेंट  में  खोने   पर
जक्ख्मो ने दी टीस, फिर घाव हरा हो गया
उसके भी नवजात बच्चों ने  अपनी  माँ को खो दिया
जख्म  उनके भी भरेंगे ,जिन्दगी फिर चलेगी
पर माँ जो उनकी और मेरी चली गयी फिर कभी ना मिलेगी ,कभी ना मिलेगी...
नोट : (सच्ची घटना पर आधारित) लेखिका की माँ की अक्सिमक एक्सीडेंट में हुई मृत्य पर समर्पित भाव...

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