गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014




हे त्रिपुरारी जब ,जब प्रथ्वी पर असुरों का आतंक छाया है ,दानवों ने कोलाहल मचाया है आपने सदेव तीसरा नेत्र खोलकर इन राक्षसों को भस्म किया है ,प्राणिमात्र की सदेव रक्षा की है ....जागो और अपने भ्रमास्त्र का सदुपयोग करो यह धरती पापों के दावानल तले गर्त में जा रही है आतंकी ,बलात्कारी .झूटे ,मक्कार जैसे सैंकडों दानवों ने अपना सर्वस्व साम्राज्य फेला लिया है ....जागो शिवा जागो

सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

लाचारी और बेबसी



देखा कल राह में एक अद्भुत नज़ारा
एक बूढा ,क्रश्काए शरीरसे लाचार था बेचारा
ठेले पर था सजाये कुछ छोटी -मोटी चीज़ों की दुकान
जो थीं उस गरीब की रोज़ी -रोटी का सामान
ठेले को हाथ जोड़कर चूम रहा था बार -बार
बुदबुदा रहा था कोई मंत्र मन में बार -बार
क्योंकि रोज सांझ को घर का चूल्हा जल पाता है सिर्फ
उसकी दिन भर की कमाई से ,चलता है घर- परिवार
जैसे करते हैं पूजा -इबादत बड़े-बड़े सेठ साहूकार अपने प्रथिष्ठानों की
वो गरीब भी कर रहा था उतनी ही इबादत अपने थोड़े से सामान की
आँखों में ढेरों सपने सजा कर बड चला वो अपनी मंजिल की ओर
पत्नी और बच्चे भी देख रहे सूनी आँखों से उसको जाते दूर 

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

हाय री किस्मत



बचपन से ही पाथते रहे ईटें ,वो बच्चे भट्टों पर
देखते गुजरती रही उम्र ईंटों को उनकी भट्टों पर
सबके आश्याने वास्ते हाथों से बन गयीं लाखों ईटें
पर वो गरीब बना ना सका एक खोली भी उम्र भर
उफ़ ,,,,,कुदरत के खेल भी हैं कैसे अनोखे
जो दर्जी सीता रहा सबके वस्त्र उम्र भर
अपने लिए ना जोड़ पाया साबुत एक कमीज़ उम्र भर 

खुदा की नेमत


कभी रोना रोते रहे कि किस्मत नहीं साथ दे रही
कभी रोये सुनकर कि सेहत नहीं साथ दे रही
कभी रही तकलीफ कि हालत नहीं साथ दे रहे
कभी था रोना कि परिवार साथ नहीं दे रहा
पूरी उम्र निकाल दी रोते -रोते ,ईश्वर को कोसते -कोसते
कभी दायें -बाएं मुड़कर ना देखा ,जो था पाया उसको ना सराहा
उस ईश्वर ने जो दिया ,उसको हमेशा था ठुकराया
अब मौत का आ गया बुलावा दरवाज़े पर
तो था वो अब हमको खुदा याद आया 

सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

नवप्रसूता का अप्रितम सौंदर्य




अपने लाल को स्तनपान कराती नवप्रसूता का अप्रितम सौंदर्य
उसकी आँखों से टपकता अद्भुत लाड़-दुलार
कपोलों पे छलकती मातृत्व की लालिमा
माँ की आत्मा भी जैसे एकाकार होने को लालायित
अपने बालक में ,उसके सम्पूर्ण अस्तित्व में
उसके एक रुदन पर माँ का चहक उठना जैसे हुआ हो आघात खुद उस पर
कानों में बजें माँ के सुमधुर घंटियाँ ,ज्यों मुस्का भी दे लाल
क्या ऐसा अद्भुत सौंदर्य धरा पर किसी से तुलना करने योग्य है
इस सौदर्य के आगे सभी विशेषण रह जाते बौने ,कोरे अस्तित्वहीन 

शनिवार, 15 फ़रवरी 2014



जब मस्तिस्क हो शून्य ,दिमाग भी ना दे साथ
सौंप दे जीवन नैया तब अपनी प्रभु के हाथ
राह हैं वो दिखाते मानुस छोड़ते ना तेरा हाथ
सब होते हैं दरवाज़े बंद ,देतें हैं वो ही नन्ही सी रौशनी की किरन
खाती है जब -जब नैया तेरी हिचकोले ,तो सम्हाले भी प्रभु आकर हौले -हौले
इंसा के अर्जित कर्म ,पुण्य ,पाप जीवन पथ पर बिखेरते हैं जरूर
कंटक हों या हों वो पुष्प ,पर अगर पतवार सौप दी प्रभु को
तो हो जाओ निश्चिन्त ,अब अपना कामवो करता जरूर
हमारे साथ यह ही तो समस्या है सबकी  कि
चाहते सब हैं कि प्रभु कर दे सब ठीक परन्तु उसकी रजा  में है ना यकीन
यकीं करो पूरा और छोड दो सब कुछ उसके ऊपर 

शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

बीती बात



संत कहते हैं,बीती ताहि बिसर दे आगे कि सुध ले ,
पर क्या यह संभव हो पाया खुद उनसे
दिल कि चोट को क्या भूल पाए देव ,मानुस ,नर या किन्नर
ज़ख्म भले भर गया  पर नासूर तो टीसता रहा है सदेव
 चाहे राम हो या रावण ,कृष्ण हो या कंस
वक्त का फायदा उठाया सबने और पुराने ज़ख्मों का भी हिसाब चुकाया
द्रोपदी ने भी लिया अपने अत्याचार का बदला
अंधे का पुत्र अंधा कहकर हिसाब था उसने चुकाया
जब किसी का बस नहीं है पुराने ज़ख्म भूल पाने पर
तो कैसे हम इंसान बिसराएँ पुराणी यादों को 

रविवार, 9 फ़रवरी 2014

द्रुपद -सुता की पीड़ा




नियति को कब और क्या है हमारी किस्मत में मंजूर 
सबब इसका है जानना नामुमकिन ,हमारी पहुँच से है दूर 
चंद लम्हों में बदल देती है किस्मत, होता है वही जो रब को है मंजूर 
चिर -प्रतीक्षित प्रियतम से व्याह की कल्पना में डूबती-उतराती दृपद्बाला 
खोई थी उसकी प्रतीक्षा में कुब आएगा वो बांका सलोना श्रेष्ठ धनुर्धर 
कभी निराशा से देखती धनुर्धरों से विहीन मंडप ,और कभी निराश पिता को
कि शायद आज रह जायेगी बेटी बिन व्याही और होगा परिहास समस्त संसार में
पर विधना ने तो कुछ अद्भुत खेल लिखा था उसके भाग्य में .........
जंगल जाते -जाते मुड गए राजकुमार उसके घर आँगन में
मन था प्रमुदित द्रोपदी का ,पा गयी थी वो मनवांछित वर
देखा था जिसका उसकी आँखों ने हर प्रहर ,हर घडी सपना
बेध दिया चड भर में सर्वश्रेठ धनुर्धर ने मछली के नेत्र को
स्तंभित रह गयी थी सभी वीरों की सभा ,निकली सबके दिल से एक आह
पिता ,पुत्री ,भाई सबका पूर्ण हुआ सपना खिल उठा था तन -मन द्रुपद सुता का
अभी वासुदेव का खेल था बाकी जिसका ना था किसी को गुमां
जानते थे वासुदेव कि पाँचों पांडवों का तेज ,बाहुबल,शौर्य
धरा पर कोई सम्हाल सकता है तो सिर्फ वो है द्रुपद कन्या
मुख से माँ के कहला दिया कि बाँट लो भिक्षा सब आपस में
पल भर में हुआ बज्रपात नवबधू के सपनों का ,बिखरे सारे अरमान
विधना कौन सा खेल खेलेगी पल भर में ना हो सकता मानुस को गुमान

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

कर्ण का दावानल

महाभारत सीरिअल में देखकर दिल में यह ख्याल आया 
कि जीवन पर्यंत अंगराज कर्ण ने कितना विरल दुःख उठाया 
पग -पग पर बालक कर्ण को तानों के दावानल नेरोज जलाया होगा 
कितनी अवहेलना का दंश कर्ण ने जीवनपर्यंत उठाया होगा 
माँ के जीवित होते भी मात्रबिहीन कहलाया जाता रहा होगा 
तिरस्कृत जीवन जीना उसने बचपन से ही सीख लिया होगा
राजकुमार होते हुए भी सदा सूतपुत्र सुनता आया होगा
वाह रे विधि कि विडम्बना कि माँ को बालक कभी माँ ना कह पाया होगा
पांच -भाईओं के होते भी जीवन भर वो परिवार की मृगतृष्णा ने भरमाया होगा
साथ ही उस माँ के दर्द की पीड़ा का कोई ना लगा सकता है अंदाजा
जिसने मानमर्यादा की खातिर पुत्र को कभी अपने सीने से ना लगाया होगा
ऐसे माँ और पुत्र इतिहास में शायद और कोई ना रहे होंगे कि
जिन्होंने हर पल ,हर दिन और बरसों इस जहर का प्याला रोज अपनी नसों में उतारा होगा

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014


सदैव से ही हम बालकों को आशीर्वाद देते वक्त कहते आये हैं की बेटा खूब तर्रकी करें, खूब फूलें -फलें पर क्योँ ना अब हम उस आशीर्वाद में थोडा इजाफा भी कर दें कि बच्चों तरक्की जरूर करो किन्तु अपने पाँव जमीं पर सदेव रखो ,जमीं पर पाँव जमाकर ही आसमान कि ओर देखो ईश्वर आपका मार्ग प्रशस्त करेंगे ......

  श्वर प्रदत्त नेमतों की खुशियों के अहसास से महरूम क्यूँ रहते हम स्वस्थ काया सबसे कीमती तोहफा है ईश्वर का जिसमें जीते हैं हम दुनिया में बेशु...