
पैदा होती हैं तो शायद सबको रुलाती हैं हर बार
पर उम्र बढने के साथ ही हो जाती हैं होशियार
घर-परिवार , माँ बाप की इज्जत की होती है दरकार
कोई भी लक्षमण रेखा पार करने से पहले सोचती है दस- बार
खुद काँटों से लहू लोहान होती हैं पर माँ बाप को बचाती हैं हर बार
बचपन से ही भाईयों की ढाल बनती रही हैं हर बार
यही त्याग, सयम और प्यार बचपन से सीखती बुनती आई है
आपने जीवन के हर रूप में नवीन श्रंगार ...........