मंगलवार, 7 जून 2011
Roshi: Roshi: बेटियां ही कियूं सहती हैं
Roshi: Roshi: बेटियां ही कियूं सहती हैं: "Roshi: बेटियां ही कियूं सहती हैं : 'बेटियां जब कोख में आती हैं तब भी दुःख देती हैं पैदा जब होती हैं, इस घिनौने संसार में तब भी दुःख देती है..."
हर युग की कहानी नारी की जुबानी
पर नारी को ही छलते आये हैं इसकी दुहाई दे-देकर
हर युग में ही भोग्या बनती आई है नारी
कभी सखा, कभी प्रयेसी और कभी पत्नी बनकर
रघुकुल में भी भोगा है दारुण दुःख सीता और उर्मिला ने
एक ने काटा बनबास अरण्य में, दूसरी ने राज कुल में
यदुवंश में भी राधा ने ही काटा अपना जीवन प्रभु प्रेम में
सनेत्र बांधी पट्टी गांधारी ने और पाया अंधत्व का दारुण दुःख
बांटी गई पांचाली पांच पतियों में जो व्याही गयी सिर्फ अर्जुन को
कांप उठती है आत्मा जब भी सोंचती हूँ इन सबके दुःख को
पुरुष ने तो हमेशा ही भोगा त्यागा और कष्ट दिया इन सबको
अग्नि परीक्षा तो दी है सदैव नारी और अबला ने
कष्ट, दुःख, विरह-वेदना सबको झेला है हर युग में उसने
ना ही कोई युग बदला , ना ही बदली हमारी सोंच
हम कितना आधुनिक युग में चाहे जी ले पर
त्याग बलिदान आज भी है हिस्से में तो नारी के कांधो पर..
मेरी दुनिया
होश संभाला तो लड़का न होने का मलाल करते पाया
कुछ बड़े हुए तो रंग सांवला होने का ज़माने ने लगाया ताना
जैसे-तैसे व्याह हुआ तो ना मिला वहां भी कोई हमारा
ना देखता गुणों को कोई वस अपबाद बताते सारा
ना देखता गुणों को कोई वस अपबाद बताते सारा
फिर जन्मी बेटियां , वो भी दिया दोष हमारा
बेटियां लातीं इनाम और पिता की सारी तकलीफों
सारा हिस्सा था हमारा
सारा हिस्सा था हमारा
पर कहते है न की घूरे के भी दिन बहुरते हैं ?
हमारा भी समय चक्र पलटा और पाया बच्चो अपने बच्चो का सहारा
बेटियों ने किया नाम रोशन और जगमग हुआ आज संसार हमारा ..
मेरे अपने
कि जुड़ जाते है वो जीवन चक्र कि धारा में
पास रहकर कर जाते हैं वो आत्मा त्रप्त
और दूर रहकर भी उनकी दुआएं करती हैं संतप्त
दिल से दी गई दुआ का भी असर दिखता फ़ौरन
हर मुश्किल घडी कटती है ऐसे जैसे शेर को देखकर भागे हिरन
दिल हमारा भी देता है दुआ उनको कि रहे हमेशा उनकी हम पर नज़र
पाएं वो भी सारे जहाँ की खुशियाँ और कुदरत का न हो उन पर कहर ..
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