कब आया सावन ,कब बीता सावन जरा भी ना हुआ इसका गुमां
बरसते ,लरजते कारे -कारे बदरा भी जैसे भुला ही बैठे मदमस्त आसमां
दीखे ना कोई प्रेमी युगल बतियाते ,भीगते इस मधुर सावन में
सब कुछ हो गयी बिसरी बातें ,सावन रह गया कवियौं की कल्पना में
हरियाला सावन था सिमट गया बस कुछ पन्नो में और रह गया था अतीत की कथाओं में
अब न सुनाई पड़ती कजरी ,ना सावन के गीत ,ना सुनती पपीहे की आर्तनाद
क्यूंकि अब हमने ना बचाए पेड़ -पौधे ,ना बाग़, ना बची वो हरितमा
बना दिया है कंक्रीट का जंगल चहुँ ओर व्यथित और परेशा नर -नारी
ना दिखते छप -छप करते बालक ना सावन का आनंद लेते नर -नारी