रविवार, 8 जुलाई 2012

वैदेही की व्यथा

आज दिव्या शुक्ल जी का लेख देखा उसी लेख पर वैदेही के लिए कुछ भाव .............
 वैदेही का तो हर युग मैं जनम ही हुआ है नारी जीवन का संताप भोगने वास्ते 
कभी जन्मी वो जनकसुता बनकर और पाए घोर कष्ट भार्या राम की बनकर 
जन्मी थी वो राजकुल में और व्याही भी गयी रघुकुल में सहचरी वो राम की बनकर 
पांचाली भी जन्मी थी राजकुल में और पाया था अर्जुन सा राजकुमार स्वयंवर में उसने 
पर वह री किस्मत ? विधि की लेखनी ने उल्टा दिया सारा का सारा किस्मत का लेखा -जोखा 
व्याही एक पति को ,और भोग्या बनी पांच पतियौं कीकुदरत का खेल निराला 
कितने ही किस्से ,कहानी भरी पड़ी है इतिहास में हमारे हर युग की वैदेही की 
रूप अनेकों पर वैदेही तो हर युग ,काल में रही है सिर्फ भोग्या ,शापित और अबला 
जब ,जैसे,जिस भी रूप में पाया है दारूण कस्ट उसने सदेव वैदेही रूप  में जनम्कर 

2 टिप्‍पणियां:

Amrita Tanmay ने कहा…

आह! बस दर्द..दर्द..दर्द..

S.N SHUKLA ने कहा…

इस सार्थक पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें .

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