आज दिव्या शुक्ल जी का लेख देखा उसी लेख पर वैदेही के लिए कुछ भाव .............
वैदेही का तो हर युग मैं जनम ही हुआ है नारी जीवन का संताप भोगने वास्ते
कभी जन्मी वो जनकसुता बनकर और पाए घोर कष्ट भार्या राम की बनकर
जन्मी थी वो राजकुल में और व्याही भी गयी रघुकुल में सहचरी वो राम की बनकर
पांचाली भी जन्मी थी राजकुल में और पाया था अर्जुन सा राजकुमार स्वयंवर में उसने
पर वह री किस्मत ? विधि की लेखनी ने उल्टा दिया सारा का सारा किस्मत का लेखा -जोखा
व्याही एक पति को ,और भोग्या बनी पांच पतियौं कीकुदरत का खेल निराला
कितने ही किस्से ,कहानी भरी पड़ी है इतिहास में हमारे हर युग की वैदेही की
रूप अनेकों पर वैदेही तो हर युग ,काल में रही है सिर्फ भोग्या ,शापित और अबला
जब ,जैसे,जिस भी रूप में पाया है दारूण कस्ट उसने सदेव वैदेही रूप में जनम्कर
2 टिप्पणियां:
आह! बस दर्द..दर्द..दर्द..
इस सार्थक पोस्ट के लिए बधाई स्वीकारें .
एक टिप्पणी भेजें