धर्मगुरुओं का चुनाव
बाजार से सामान खरीदते वक्त ,या हो और कोई सौदा सुलफ
रिश्ता जोड़ते वक्त , या दोस्ती करते वक्त हम बरतते हैं पूरी एहतियात
पर ना जाने क्योँ भयंकर चूक कर जाते हैं अपने धर्मगुरु चुनते वक्त
आसाराम ,भोले बाबा ,राधेमां जैसे ढेर से नाराधमी,धोंगियौं को
सौंप देतें हैं अपने जीवन की बागडोर ,उन अधमियौं के हाथ
अपना परिवार ,अपने नौनिहाल ,अपनी स्त्री और पति भी
मुड कर ना देखते उनका अतीत ,वर्तमान उनकी तिलस्मी दुनिया
भेड-चाल में अनुसरण किये चले जाते हैं हम ,मूर्खों की मानिद
यह भी तो बाजार है ,दुकानें हैं इन गुरुओं की जो हमको बेचते हैं
लुभाते हैं अपनी चालों से ,और हम हैं कि बिना जानकारी
बन जाते हैं उनके भक्त ,लुट्वातेहैं अपनी अस्मिता ,अपना बजूद
अपना सब कुछ पर ना कभी छोड़ते उनके हाथों लुटना
यह सिलसिला तो यूं ही चलता रहेगा ना कभी थमा है ना थमेगा
गलत वो नहीं गलत हैं हम जो सदियौं से यूं ही पाप के रहे हैं भागीदार
क्यूंकि गलत धर्मगुरुओं का चुनाव था हमको स्वीकार
रिश्ता जोड़ते वक्त , या दोस्ती करते वक्त हम बरतते हैं पूरी एहतियात
पर ना जाने क्योँ भयंकर चूक कर जाते हैं अपने धर्मगुरु चुनते वक्त
आसाराम ,भोले बाबा ,राधेमां जैसे ढेर से नाराधमी,धोंगियौं को
सौंप देतें हैं अपने जीवन की बागडोर ,उन अधमियौं के हाथ
अपना परिवार ,अपने नौनिहाल ,अपनी स्त्री और पति भी
मुड कर ना देखते उनका अतीत ,वर्तमान उनकी तिलस्मी दुनिया
भेड-चाल में अनुसरण किये चले जाते हैं हम ,मूर्खों की मानिद
यह भी तो बाजार है ,दुकानें हैं इन गुरुओं की जो हमको बेचते हैं
लुभाते हैं अपनी चालों से ,और हम हैं कि बिना जानकारी
बन जाते हैं उनके भक्त ,लुट्वातेहैं अपनी अस्मिता ,अपना बजूद
अपना सब कुछ पर ना कभी छोड़ते उनके हाथों लुटना
यह सिलसिला तो यूं ही चलता रहेगा ना कभी थमा है ना थमेगा
गलत वो नहीं गलत हैं हम जो सदियौं से यूं ही पाप के रहे हैं भागीदार
क्यूंकि गलत धर्मगुरुओं का चुनाव था हमको स्वीकार
ROSHI
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