गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

बसंत

बसंत ऋतू आई ,साथ  ही अपने हैं बसंती  बयार लाई
शरद  ऋतू में ,साथ ही थोड़ी  सी नरमी  भी है  आई                 
पावन पवन सभी के तन को बहुत ही हैं सुहाई,                  
बालक,वृद्ध,युवा सभी को हैं पुरवाई भाई                                          
अम्बर में रंगीन पतंगो  की  अदभुत छठा  है छाई
क्या बच्चे ,क्या युवा  सभी जन ने हैं हुर्दंग मचाई
घरों की छतें जो साल भर रहती है अनछुइ   
उन्ही छतों पर गीत, संगीत और  धमाचौकडी  है मचाई    
प्रकृति  ने मानो धरा पर पीत पुष्पों की चादर है फेहराई
सर्वत्र उल्लास और बगियन में भी बौरों पर भी अमराई छाई 
कोयलिया की कूक ,पशु -पक्षियौं ने भी ली है अब  अंगडाई  
ऐसी है हमारी बसंत ऋतू तभी यह ऋतूओं कि रानी कहलाई 

3 टिप्‍पणियां:

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

शरद ऋतू हे ही मतवाली !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हम सबका कैसा हो बसंत?

Vibha ने कहा…

आशावादी सुंदर लेख

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