क्यों कर हम बचपन से सदेव लड़किओं को ही देते रहे हैं उपदेश
हमारी माँ ने हमको समझाया बाल्यकाल से ही हमारी मर्यादा की सीमायें
जो हम सुनते आये थे उन्ही परम्पराओं की डोरी से बाँधा अपनी बच्यौं को
अब जब हमारी बच्ची बन गयी है खुद मां तो कहते सुना उसको सब यथावत
चार पीड़ी से चल रही हैं लड्कियुं के लिए सब कुछ वैसे का वैसा ........
ना समाज में ,ना घर में ,ना देश में बदला है कुछ स्त्रियुं के वास्ते
ना सतयुग ,ना त्रेता युग और ना ही कलयुग ला पाया तनिक सा भी बदलाव
जो लक्ष्मण रेखाएं खिचीं थी सतयुग में ,बरक़रार है आज भी उन रेखाओं का वजूद
प्रताडना ,नित नए जुल्म,जलाना,बलात्कार , मानसिक शोषण बरक़रार हैं यूँ ही
कभी किसी राम ,कृष्ण के लिए नहीं खींची कोई रेखा ना हम आज भी सिखा रहे
कोई मर्यादा का पाठ अपने लडको को की रहें वो भीतर अपनी लक्ष्मण रेखा के
संयम का पाठ पढाना जरूरी है उनको भी बालपन से ही लड्कियुं के साथ -साथ .....
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