सोमवार, 2 जून 2014

आधुनिकता की तेज बयार




मृतक की आत्मा की शांति हेतु रखे जाने पाठ भी
अछूते ना बचे हैं आधुनिकता की तेज बयार से
थोथा दिखावा ही बन कर रह गयी हैं प्राचीन रूदियाँ
किसी अपने का गम कम ,ना आने वालों का गम होता है ज्यादा
उसकी यादें सालती हैं कम ,उपस्थित संगत पर ध्यान होता ज्यादा
हम आने -जाने वालों की गिनती में ही उलझे रह जाते हैं ज्यादा
तनिक भी स्मरण नहीं करते उस पवित्र आत्मा को जो विलीन हो गयी ईश्वर में
अपने व्यापार ,कामकाज ,को निपटने की बस रहती है हमको हड़बड़ी
अपना घर ,बच्चे ,दुनिया के रासरंग के मकडजाल ने उलझा रखा है हमको इतना
तनिक ध्यान ना जाता कि हम क्या सिखा रहे अपने लाडलों को
हमारे पास जब वक्त है इतना कम अपनों को स्मरण करने वास्ते
तो वो बेचारे अपना कीमती वक्त कैसे निकालेंगे हमारे वास्ते ..........

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