ना कोई चिट्ठी .ना कोई संदेस पंहुचा सकते हैं हम वंहा
चली गयी हो माँ आप हम को छोड़ कर जहाँ
रोज़ रोता है दिल ,और तिल तिल-तिल मरते हैं हम यहाँ
सोचा भी न था कभी ऐसा भी होगा हमारे साथ यहाँ
जिंदगी में जैसे एक झंझावत आया और फैला सब यहाँ -वहां
साडी दुनिया मना रही है मात्-दिवस हमारी नज़रे हैं सिर्फ वहां
जहाँ आप जा बैठी हैं,क्यूँ नहीं हमसे मिल सकती हैं यहाँ ???????????????
4 टिप्पणियां:
माँ तो माँ होती है उसे कभी भूलाया नहीं जासकता.....
माँ की स्मृति जी जी उठती..
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माता-पिता की स्मृतियों को कभी नहीं भुलाया जा सकता …
भावनापूर्ण रचना के लिए आभार !
माँ पर भावपूर्ण रचना अच्छी लगी |
आशा
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