शनिवार, 12 मई 2012

ना कोई चिट्ठी .ना कोई संदेस पंहुचा सकते हैं हम वंह...


ना कोई चिट्ठी .ना कोई संदेस पंहुचा सकते हैं हम वंहा
चली गयी हो माँ आप हम को छोड़ कर जहाँ 
रोज़ रोता है दिल ,और तिल तिल-तिल मरते हैं हम यहाँ 
सोचा भी न था कभी ऐसा भी होगा हमारे साथ यहाँ 
जिंदगी में जैसे एक झंझावत आया और फैला सब यहाँ -वहां 
साडी दुनिया मना रही है मात्-दिवस हमारी नज़रे हैं सिर्फ वहां 
जहाँ आप जा बैठी हैं,क्यूँ नहीं हमसे मिल सकती हैं यहाँ ??????????????? 

4 टिप्‍पणियां:

Maheshwari kaneri ने कहा…

माँ तो माँ होती है उसे कभी भूलाया नहीं जासकता.....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

माँ की स्मृति जी जी उठती..

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

.

माता-पिता की स्मृतियों को कभी नहीं भुलाया जा सकता …

भावनापूर्ण रचना के लिए आभार !

Asha Lata Saxena ने कहा…

माँ पर भावपूर्ण रचना अच्छी लगी |
आशा

                                  दिनचर्या   सुबह उठकर ना जल्दी स्नान ना ही पूजा,व्यायाम और ना ही ध्यान   सुबह से मन है व्याकुल और परेशा...