बुधवार, 23 मई 2012

देखा आज एक पूर्ण पल्लवित पलाश का एक वृक्ष अपने पूर...

देखा आज एक पूर्ण पल्लवित पलाश का एक वृक्ष
अपने पूरे यौवन ,पूरे शबाब के साथ खड़ा था वो 
अपनी पूर्ण विकसित शाखों को यूँ फेलाए  था वो 
जैसे लेने को आतुर हो प्रेयसी को अपनी बाँहों में 
तन पर लपेटे था वो पीत वसन की चादर चहुँ ओर 
रिझा रहा था वो अपने पीले पुष्प गिराकर अपनी प्रेयसी को 
हर कोशिश थी उसकी भरसक प्रेमिका को लुभाने की 
कभी देखा है ऐसा निशब्द प्रेमालाप किसी भी प्रेमी का 
जो बिन बोले ही सब कुछ कह देता है पूर्न मौन रहकर  

2 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

सादर -
बढ़िया प्रस्तुति-
किन्तु इस दर्द का क्या??

मनभावन यह सीनरी, देख सीन री देख |
नख शिख तक सज्जा किये, प्रेम मयी आलेख |

प्रेम मयी आलेख, बुलाया भी प्रेयसी को |
लेकिन तूफाँ-शेख, रिझाए वह बहशी को |

पेट्रो-डालर थाम, छोड़ कर प्यारा सावन |
चुका प्रेम का दाम, गई दे गम-मनभावन ||

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मौन बहा शब्दों के पार..

                                  दिनचर्या   सुबह उठकर ना जल्दी स्नान ना ही पूजा,व्यायाम और ना ही ध्यान   सुबह से मन है व्याकुल और परेशा...