प्रचड़ शीत लहर का हुआ है भीषण प्रकोप
शायद इसी कारण शब्द ,विचार सब शून्य
ना कोई एहसास ,ना कोई शब्दों का पास
सोचते बस गुजरता है दिन कैसे कटता होगा दिन -रात
बिन कथरी ,बिन बिछावन कुछ ना होगा जिनके पास
ईश्वर का वरद हस्त ही होता है जिनके साथ
प्रकर्तिक प्रकोप भी ना डिगा पाता जिनके जीवन की जिजीविषा
देखना है तो देखो कण -कण में है बिखरा पड़ा ईश्वर का वास
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