चंद्र ,सूर्य सम गृह चाहे कोशिश कर लें जितना
राहू ,केतू भी अपना स्थान परिवर्तन कर लें कितना
पर दीन -हीन की दशा ना बदल सकाहै कभी भी विधना
शायद ये गृह दशा ,सितारे भी अपना प्रभाव दिखाते हैं उतना
जब ईश्वर की मार से लाचार मानुष भी भूल बैठता है जीने का सपना
दारिद्र्य ,रोग ,विपन्नता जैसे गृह आ बैठते हैं कुंडली में समझ कर उसकी घर अपना
पीढ़ी -दर पीढ़ी चलती रह जाती ज़िंदगी बिना बदले निज स्वरूप अपना
वेद ,पुराण क्या उनकी कुंडली का कोई उपाए ना बूझ सके अंगुल जितना
कोई टोटका ,कर्म -कांड ,कभी ना फल दे सका बदल ना सका दुर्बल का जीने का सपना
समस्त राशि- फल उपाए ,,सदियो से बस बदलते रहे हैं सबल के संग स्वरूप अपना
रोशी --
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