सिर्फ एक दिन प्रेम -दिवस के लिए क्यौ ?
प्रेम का एहसास बाकी 364 दिन भी क्यौ नहीं ?
पत्नी ,प्रेमिका तक ही क्यों सीमित रखे इस जज्बे को
माँ ,बेटी -बहन ,अनगिनत रूप हें हमारे आस -पास इसके
बस दिल से ,नज़र से देखने की देर है हमको ,उन तक पाहुचाने की इसको
देर किस बात की है ,क्यौ ना आज से ही शुरुआत कर दे इसकी
और प्रेम रंग से सरोबार कर दें काया अपने प्रिए की
बड़ा ही गहरा रंग होता है प्रेम का ,जो भिगोता है दोनों को
देने वाला भी भीग जाता है प्रेमरस में ,पाने वाला भी मदमस्त हो जाता है
रोशी--
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