रुई के फाये सी मुलायम और भोर की ओस सी निर्मल होती हैं बेटियाँ
घर –चौबारे की धड़कन ,बाप की पगड़ी की शान होती है बेटियाँ
ईश्वर प्रदत्त अनगढ़ मिट्टी का बेमोल प्रसाद होती है बेटियाँ
जिस साँचे में ढालो झट से आकार ले लेती हैं बेटियाँ
कभी इमली सी खट्टी कभी मिश्री की डली होती हैं बेटियाँ
अनकही बातों का पिटारा ,चुट्कलों और गप्पों की खान होती हैं बेटियाँ
माँ की पीड़ा ,दिल का दर्द पड़ने में माहिर होती हैं बेटियाँ
धान के बिरवे सी किस्मत पाकर सदेव जन्मती हैं यह बेटियाँ
पीहर में अपना बचपन गुजार अंजान राहों पर निकल पड़ती हैं बेटियाँ
माएके का मान और अपनी ससुराल की शान होती हैं बेटियाँ
चंद लम्हे पीहर में गुजार वर्षों की खुशियाँ गठरी में सँजो ले जाती हैं बेटियाँ
मेरा गौरव और मेरा सम्मान दोनों ही है मेरी बेटियाँ
रोशी --
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