मंगलवार, 1 जनवरी 2013

उत्पीडन

ना कोई शब्द .ना कोई अलफ़ाज़ बचे हैं आज हमारे पास
सब कुछ चिंदी -चिंदी उड़ गए ,बह गए समूचे दर्द के दरिया में 
थोडा -थोडा तो हम रोज़ मरती ही थी कुदरतन इस समाज में 
क्यूंकि हम लड़की जो जन्मी थी माँ के गर्भ से ,इस दुनिया में 
कभी राह चलते शोहदों  ने किया था दुश्वार ,और छीन लिए एहसास 
 सारे गिद्ध रोज़ ताकते ताज़ा मांस अपनी अपनी मंडी का 
किसको और कैसे मिलता जरा भी ना भान रहता अपनी अपनी बेटी का 
क्यूंकि हम लड़की जो जन्मी थी माँ के गर्भ से ,इस दुनिया में 
बहुत हो चुका अब अत्याचार मासूमों पर ,अब तो उठो और चेतो 
घर में ही सिमट जाएगी जिन्दगी अब बेटी की 
देश के नेता तो कुछ कर ना सकेंगे ,खुद हैं जो खुनी और बलात्कारी 
आवाम को ही करना , बेटिओं को खुद लड़ना होगा 

6 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

मंगलमय नव वर्ष हो, फैले धवल उजास ।
आस पूर्ण होवें सभी, बढ़े आत्म-विश्वास ।

बढ़े आत्म-विश्वास, रास सन तेरह आये ।
शुभ शुभ हो हर घड़ी, जिन्दगी नित मुस्काये ।

रविकर की कामना, चतुर्दिक प्रेम हर्ष हो ।
सुख-शान्ति सौहार्द, मंगलमय नव वर्ष हो ।।

Amrita Tanmay ने कहा…

और कोई रास्ता भी तो नहीं..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥♥HAPPY NEW YEAR...नव वर्ष मंगलमय हो !♥♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥

Pratibha Verma ने कहा…

भावपूर्ण ...

mridula pradhan ने कहा…

बेटिओं को खुद लड़ना होगा.....prernaspad.....

विभूति" ने कहा…

shaskat rachna...

                                  दिनचर्या   सुबह उठकर ना जल्दी स्नान ना ही पूजा,व्यायाम और ना ही ध्यान   सुबह से मन है व्याकुल और परेशा...