मंगलवार, 19 जुलाई 2011

एक चेहरे पे कई चेहरे

एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग
क्या खूब कहा है किसी ने सच में होते हैं ऐसे लोग
सामने कुछ और,पीछे कुछ बाते बनाते ही रहते हैं लोग
मन भर उठता है जब देखते हैं रोज ऐसे १०-२० लोग
क्या दुनिया में अपना कोई नहीं पूछता है मन हमसे रोज
इस मन को कैसे समझाएँ की होते नहीं हैं सब अपने लोग
सामने दुआए पीछे बददुआएं पल पल रंग बदलते लोग
दिल करता चीत्कार , आत्मा हाहाकार देखकर आसपास ऐसे लोग
पर क्या करें दुनिया- दारी तो न छोड़ी जाएगी चाहें कुछ भी करे लोग
दिल की न सुनकर दिमाग से ही पहचाने जाते हैं ऐसे लोग
कितना भी मजबूत रक्खें पर दिल फिसल ही जाता है देखते ही ऐसे लोग
चिकनी चुपड़ी, निज प्रशंशा सुनने को मन ढूंडता है ऐसे लोग .........

7 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

दिल की न सुनकर दिमाग से ही पहचाने जाते हैं ऐसे लोग
कितना भी मजबूत रक्खें पर दिल फिसल ही जाता है देखते ही ऐसे लोग


बिलकुल सही बात कही है आपने।

सादर

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग
क्या खूब कहा है किसी ने सच में होते हैं ऐसे लोग
सामने कुछ और,पीछे कुछ बाते बनाते ही रहते हैं लोग

आज के यथार्थ का बहुत सटीक चित्रण...

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

यथार्थ की सुन्दर प्रस्तुति.

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 26/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Dorothy ने कहा…

आजकल के समयों की बेहद सटीक अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

यथार्थ को कहती अच्छी प्रस्तुति ..

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