मंगलवार, 19 जुलाई 2011

दर्द इतना क्यूँ ?

छोड़ दिया है आब दिल पर पड़ी गर्द झाड़ना भी
क्यूंकि उसके साथ- साथ नासूर भी हो जाते हैं
फिर देते हैं टीस , कर जाते हैं घायल रूह को
तो सोचा क्यूँ हटाऊं इस गर्द को मई भी
मरहम का काम इससे ज्यादा न कर सकेगा कोई भी
दब जाते हैं इसके नीचे सभी जख्म और घाव
अनगिनत है जो शायद गिन भी न सकेगा कोई भी ....

6 टिप्‍पणियां:

Shikha Kaushik ने कहा…

मार्मिक अभिव्यक्ति .दिल को झंकझोरती सी .आभार

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

गहरी अभिव्यक्ति।

Rakesh Kumar ने कहा…

ओह!
यह क्या और कैसा लिख दिया है आपने
दिल को झकझोर कर रख दिया है आपने.

गहरी व मार्मिक अभिव्यक्ति के लिए आभार.

मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

बहुत ही भावुक, मन को छूती रचना..... हार्दिक बधाई।

सुज्ञ ने कहा…

दर्द की गहन अभिव्यक्ति!!जैसे आर्तनाद!!
चित्र भी विषाद उत्पन्न कर अभिव्यक्ति को भाव दे जाता है।

विभूति" ने कहा…

बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

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