क्यूंकि उसके साथ- साथ नासूर भी हो जाते हैं
फिर देते हैं टीस , कर जाते हैं घायल रूह को
तो सोचा क्यूँ हटाऊं इस गर्द को मई भी
मरहम का काम इससे ज्यादा न कर सकेगा कोई भी
दब जाते हैं इसके नीचे सभी जख्म और घाव
अनगिनत है जो शायद गिन भी न सकेगा कोई भी ....
दिनचर्या सुबह उठकर ना जल्दी स्नान ना ही पूजा,व्यायाम और ना ही ध्यान सुबह से मन है व्याकुल और परेशा...
6 टिप्पणियां:
मार्मिक अभिव्यक्ति .दिल को झंकझोरती सी .आभार
गहरी अभिव्यक्ति।
ओह!
यह क्या और कैसा लिख दिया है आपने
दिल को झकझोर कर रख दिया है आपने.
गहरी व मार्मिक अभिव्यक्ति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
बहुत ही भावुक, मन को छूती रचना..... हार्दिक बधाई।
दर्द की गहन अभिव्यक्ति!!जैसे आर्तनाद!!
चित्र भी विषाद उत्पन्न कर अभिव्यक्ति को भाव दे जाता है।
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
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