शुक्रवार, 30 नवंबर 2012

बरसता सावन

टिप -टिप गिरती बूंदों की आवाज़
कर रही थी यूँ रात्रि की निस्तब्धता भंग
दूर कही कोई छेड़ रहा हो जलतरंग 
झींगुरों की सरसराहट भी बना देती है अद्भुत समां 
कोई है मदमस्त सावन की रूमानियत में 
किसी का होश है हुआ इस सावन में गुमां 
नन्हे बालक ले रहे पूरा आनंद उस घुमड़ते सावन का 
अब कहाँ रहे वो भीगते प्रेमी युगल इस मद मस्त सावन में
हो गयी हैं अब यह किताबी बातें सिर्फ इस जहाँ में 
बदल लिया है अब शायद प्रकृति ने भी अपना स्वरुप 
ना वो रहे काले घुमड़ते ,लरजते ,बरसते मेघ 
न रहा वो सावन में भीगने ,लुत्फ़ उठाने का आनंद  

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