गुरुवार, 27 अगस्त 2020
तन का रंग तो सबने खूब धोया पर ह्रदय में ना झांक पाया कोई
काया बना ली कोरी अपनी पर आत्मा और दिल ना बदल पाया कोई
आतंक,दहशत ,जुल्म ,झूठ ,फरेब के पक्के रंगों से आत्मा है सरोवार
काश हम देख पाते झांक कर अंतस में अपने ,काया को निर्मल किया होता एकबार
काया बना ली कोरी अपनी पर आत्मा और दिल ना बदल पाया कोई
आतंक,दहशत ,जुल्म ,झूठ ,फरेब के पक्के रंगों से आत्मा है सरोवार
काश हम देख पाते झांक कर अंतस में अपने ,काया को निर्मल किया होता एकबार
होली के रंग विखराते अद्भुत घटा और ना होती होली बदरंग
खुद भी मनाते पावन त्योहार ,दुनिया को प्यार के रंग से करते सरोबार
खुद भी मनाते पावन त्योहार ,दुनिया को प्यार के रंग से करते सरोबार
बुधवार, 26 अगस्त 2020
माँ
माँ तो ईश्वर से प्राद्त्त अनुपम सौगत होती हैगर्भ से लेकर जीवन पर्यत बालक को अपना सर्वस्व देती है
बालक मुसकाए तो माँ खिलखिलाए, कदाचित रोए तो खून के आंसू रोती है
बालक पर सर्वस्व न्यौछावर और उसके इर्द गिर्द ही अपनी दुनिया बुन लेती है
नित नूतन सपनो का जाल, माँ शिशु के वास्ते बुन लेती है
बालक की आँखो से ही माँ सारे ब्रह्माण्ड है देखती
तोतली जुबां से सारी भाषाएँ गुनती और समझती है
माँ को करते नमन देवता और दुनिया भी सलाम करती है
माँ को करते नमन देवता और दुनिया भी सलाम करती है
सिर्फ एक दिन ही उस माँ के लिए दुनिया मदर्सडे मनाती है
साल के 365 दिन भी हैं कम ,मगर दुनिया उसकी एहमियत माँ के कूच कर जाने के बाद समझती है
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