बुधवार, 19 जनवरी 2011

सर्दी

सर्दी कि वो ठिठुरती रात नहीं भूलती
क्रश्काए शरीर, पड़ी झुर्रियों के साथ
जो चाहता था एक टुकड़ा कम्बल का और मुट्ठी भर धूप
हड्डियाँ जिसकी रही थी ठण्ड से चरमरा खूब
उग्र शीत वायु उड़ा कर ले जाना चाहती थी उसका अस्तित्व
पास ही क्लव में चल   रहा था नववर्ष का प्रोग्राम
जितनी भी महिलाएं थी सब थीं लगभग नि: वस्त्र
पतले झीने आबरणो में थी जो छुपा रहीं थी काया
प्रचंड ठंडी वायु उड़ा कर ले जाना चाहती थी उनका भी अस्तित्व
मन है हैरान, परेशान कि शीत ,ठंडी वायु का प्रकोप सहेगा कौन ?
काँपता ,निस्तेज परेशान वृद्ध  या वो आधुनिकाएँ
 वृद्ध चाहता था एक गज कम्बल, या थोड़ी सी गर्मी
उम्र भर भी जो न जुटा पाया था और हो गया मरणासन्न
युवतियां ,बालाएं भी सम्पूर्ण अपनी सुख सम्रद्धि के साथ
नहीं ढकना चाहती थी अपनी सुंदर काया
और सह रहीं थी ख़ुशी-ख़ुशी प्रकृति  का संताप  
जीत आखिर हुई उन युबतियों के  हौसले की
परास्त कर दिया था उन्होंने कुदरत के कहर को
पर वो बालाएं हंसती - खिलखिलाती मना रहीं थी न्यू- ईअर 
...

12 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

यही तो विडम्बना है..... सुंदर भावों की प्रस्तुति.....

Sushil Bakliwal ने कहा…

यह विचित्र विसंगति ही आज का यथार्थ है । पैनी नजर से प्रस्तुत आपकी इस प्रस्तुति पर आभार...

विशाल ने कहा…

बहुत अच्छा चित्र खींचा आप ने आप ने सर्दी के परकोप का.एक मर्जी से सहता है, दूसरा मजबूरी से. बहुत बढ़िया.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

दुखद विरोधाभास

Arvind Jangid ने कहा…

बड़ी ही गंभीरता से चित्रण किया है....सुन्दर भाव आपका आभार.

बेनामी ने कहा…

रोशी जी,

आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ......पहली ही पोस्ट जो पढ़ी......हृदयस्पर्शी, मार्मिक....बहुत ही सुन्दर रचना और साथ में तस्वीरों का मेल बहुत ही भाया.....आगे भी साथ बना रहे इस उम्मीद में आपको आज ही फॉलो कर रहा हूँ.....शुभकामनायें|

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Sunil Kumar ने कहा…

पैनी नजर की इस प्रस्तुति पर आभार...

JAGDISH BALI ने कहा…

lovely poem with beautiful paradox.

सुज्ञ ने कहा…

विरोधाभास को आपने मार्मिक अभिव्यक्त किया। बधाई

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

bahut umdaa......

बेनामी ने कहा…

विडम्बना है आपकी इस प्रस्तुति पर आभार...

संजय भास्‍कर ने कहा…

गंभीरता से चित्रण किया है

                                  दिनचर्या   सुबह उठकर ना जल्दी स्नान ना ही पूजा,व्यायाम और ना ही ध्यान   सुबह से मन है व्याकुल और परेशा...