पर थोड़े से दुखो में ही रही उलझी और ना सामना हुआ उनसे
हम क्यूँ ना देख पाते हैं वो खुशियाँ, सपने और उल्लास
रह जाते हैं यूँ ही मसरूफ अपने दुखो, तकलीफों में ही हर साँस
विधाता ने तो दिया ऐसा सुन्दर मानव रूप हमको
दिए हमको गम तो बक्श दिन ठेरों इनायतें हम पर
कभी स्याह कभी सफ़ेद दिखा दिए सब सपने हमको
अगर रहता स्याह रंग से सरोवर जीवन हमारा
तो सफ़ेद रंग का ना देख पते हम अदभुत नज़ारा
जो भी ख़ुशी मिले जियो सदैव हंस के मेरे दोस्तों
और मिले जो कभी गम तो उसे भी लगा तो गले दोस्तों ......
2 टिप्पणियां:
हम क्यूँ ना देख पाते हैं वो खुशियाँ,
सपने और उल्लास
रह जाते हैं यूँ ही मसरूफ अपने दुखो,
तकलीफों में ही हर साँस
जीवन दर्शन से परिपूर्ण बहुत सुन्दर रचना...
very touching
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