सब कहते हैं कि बढती उम्र है देती बुडा इंसान को
नहीं ......कदापि नहीं ,सिर्फ दो चार अपवादों को छोडकर
आम इंसान तो रोटी कीजुगत में ही हो जाता है बुडा
परिवार के वास्ते छप्पर ,लिंटल डलवाते सरक जाती है आधी उम्र
रही- सही कसर पूरी कर देती है ,उसकी घर बैठी जवान बेटी
खेत में बढती है नित चार अंगुल ककड़ी पाती हैं सीरत वैसी यह जवान बेटियां
बढता दहेज का दावानल ,सड़क पर बड़ते शोहदे बस काफी हैं बुडा देने के लिए
बच्चों के भविष्य के सपनो का नित टूटना -बिखरना ,फिर रोज नए खाव्ब
असमय ही दे जाते हैं ढेरों झुर्री ,सलवटें और निस्तेज काया .......
आम आदमी तो यूँ ही असमय पहुँच जाता है जिंदगी के आधे सोपान पर
उच्च- बर्ग जैसे अपनी मुट्ठी में जकड लेता है बुढापा
मेकअप की परतों के नीचे ,शानोशौकत के आवरण में छिपा लेता है बुडापा
भरा पेट ,बदन पर कीमती लिबास सब कुछ छिपा लेते हैं बुडापा
न कल की फ़िक्र ,ना भविष्य का अन्धकार .कोसो दूर रहता इनसे बुडापा
नहीं ......कदापि नहीं ,सिर्फ दो चार अपवादों को छोडकर
आम इंसान तो रोटी कीजुगत में ही हो जाता है बुडा
परिवार के वास्ते छप्पर ,लिंटल डलवाते सरक जाती है आधी उम्र
रही- सही कसर पूरी कर देती है ,उसकी घर बैठी जवान बेटी
खेत में बढती है नित चार अंगुल ककड़ी पाती हैं सीरत वैसी यह जवान बेटियां
बढता दहेज का दावानल ,सड़क पर बड़ते शोहदे बस काफी हैं बुडा देने के लिए
बच्चों के भविष्य के सपनो का नित टूटना -बिखरना ,फिर रोज नए खाव्ब
असमय ही दे जाते हैं ढेरों झुर्री ,सलवटें और निस्तेज काया .......
आम आदमी तो यूँ ही असमय पहुँच जाता है जिंदगी के आधे सोपान पर
उच्च- बर्ग जैसे अपनी मुट्ठी में जकड लेता है बुढापा
मेकअप की परतों के नीचे ,शानोशौकत के आवरण में छिपा लेता है बुडापा
भरा पेट ,बदन पर कीमती लिबास सब कुछ छिपा लेते हैं बुडापा
न कल की फ़िक्र ,ना भविष्य का अन्धकार .कोसो दूर रहता इनसे बुडापा
3 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया...लेकिन महंगे कपड़ो, गहनों और मेक अप से बुढ़ापा केवल छिपाया जा सकता है। मगर उसे रोका नहीं जा सकता वो तो आकर ही रहता है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (08-12-2013) को "जब तुम नही होते हो..." (चर्चा मंच : अंक-1455) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सार्थक और सटीक
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