बुधवार, 11 दिसंबर 2013

मनवा की गति है न्यारी .............



हमारा मन समुंदर की मानिद ही है शायद
समेटे है मन ,समुंदर भांति अतुल गहराई
लहरों सम आते ढेरों उतार -चडाव
पा ना सका कोई इस मनवा की गहराई
सागर है समेटे ढेरों अदुलित राशि अपने दामन में
मिनटों में ज्वार -भाटा ,तत्काल गज़ब का ठहराव
अद्भुत शांति ,दिखे ऊपर से ना पाए कोई अंदर का उतार -चडाव
ना जाने कोई मन का गम -और देखे उसका दर्द
क्या सागर की लहरें गिन पाया है कोई ?
कदापि नहीं ,,,इस मनवा की भी गति है न्यारी
पल में है शांत .और पल में ही है दुश्वारी 

4 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (12-12-13) को होशपूर्वक होने का प्रयास (चर्चा मंच : अंक-1459) में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Neeraj Neer ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति !
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Atiba Shamsi ने कहा…

Really mam, i did not know you too write so well.

                                  दिनचर्या   सुबह उठकर ना जल्दी स्नान ना ही पूजा,व्यायाम और ना ही ध्यान   सुबह से मन है व्याकुल और परेशा...