कि जीवन पर्यंत अंगराज कर्ण ने कितना विरल दुःख उठाया
पग -पग पर बालक कर्ण को तानों के दावानल नेरोज जलाया होगा
कितनी अवहेलना का दंश कर्ण ने जीवनपर्यंत उठाया होगा
माँ के जीवित होते भी मात्रबिहीन कहलाया जाता रहा होगा
तिरस्कृत जीवन जीना उसने बचपन से ही सीख लिया होगा
राजकुमार होते हुए भी सदा सूतपुत्र सुनता आया होगा
वाह रे विधि कि विडम्बना कि माँ को बालक कभी माँ ना कह पाया होगा
पांच -भाईओं के होते भी जीवन भर वो परिवार की मृगतृष्णा ने भरमाया होगा
साथ ही उस माँ के दर्द की पीड़ा का कोई ना लगा सकता है अंदाजा
जिसने मानमर्यादा की खातिर पुत्र को कभी अपने सीने से ना लगाया होगा
ऐसे माँ और पुत्र इतिहास में शायद और कोई ना रहे होंगे कि
जिन्होंने हर पल ,हर दिन और बरसों इस जहर का प्याला रोज अपनी नसों में उतारा होगा
पग -पग पर बालक कर्ण को तानों के दावानल नेरोज जलाया होगा
कितनी अवहेलना का दंश कर्ण ने जीवनपर्यंत उठाया होगा
माँ के जीवित होते भी मात्रबिहीन कहलाया जाता रहा होगा
तिरस्कृत जीवन जीना उसने बचपन से ही सीख लिया होगा
राजकुमार होते हुए भी सदा सूतपुत्र सुनता आया होगा
वाह रे विधि कि विडम्बना कि माँ को बालक कभी माँ ना कह पाया होगा
पांच -भाईओं के होते भी जीवन भर वो परिवार की मृगतृष्णा ने भरमाया होगा
साथ ही उस माँ के दर्द की पीड़ा का कोई ना लगा सकता है अंदाजा
जिसने मानमर्यादा की खातिर पुत्र को कभी अपने सीने से ना लगाया होगा
ऐसे माँ और पुत्र इतिहास में शायद और कोई ना रहे होंगे कि
जिन्होंने हर पल ,हर दिन और बरसों इस जहर का प्याला रोज अपनी नसों में उतारा होगा
1 टिप्पणी:
"ऐसे माँ और पुत्र इतिहास में शायद और कोई ना रहे होंगे कि जिन्होंने हर पल ,हर दिन और बरसों इस जहर का प्याला रोज अपनी नसों में उतारा होगा"
माँ - बेटे को सादर वंदन
एक टिप्पणी भेजें