गुरुवार, 27 अगस्त 2020

पुनर्जन्म ......
बन्द खिड़की का पट खुला 
मानो जिंदगी को मिली नई उडान
क्योंकि उसका शरीर था निष्क्रिय
  कल्पना को उसकी मिले   नए रंग
अम्बर नीला ,बादल सफ़ेद  बिखरे थे चहुं ओर बहुरंग 
कैसा अम्बर ,कैसा बादल और कैसा इन्द्रधनुष  का है रंग ?
सोचती ही रही  थी  जो इतने बरसों से .आज भर उठे जीवन  में  सप्त रंग |

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सार्थक और सुन्दर।
दूसरे लोगों के ब्लॉग पर भी टिप्पणी किया करो।
आपके यहाँ भी कमेंट अधिक आयेंगे।

Amrita Tanmay ने कहा…

अहा !

  कुम्भ है देश विदेश सम्पूर्ण दुनिया में छाया असंख्य विदेशियों ने भी आकार अपना सिर है नवाया सनातन में अपना रुझान दिखाया ,श्रधा में अपना सिर ...