माँ की सीख
मेरी तो दुनिया है मेरे
बच्चो में ,घर में ,अपनों
में
वो सब है तो दुनिया ही हर
ख़ुशी है कदमो में
छोटा सा घर , जहाँ हो सारे जहाँ की खुशियाँ यही चाहा था मैंने
ना थे ऊँचे सपने ,ना ही ऊँची उडान पैर थे ज़मीं पर अपने
शायद यही घुट्टी दी थी माँ ने बचपन में हमको
चादर देख ही पावं फैलाना
अपने बिटिया, ना अनुसरण करना सबको
अपने बच्चो को भी सदा यही घुट्टी पिलाई थी हमने
चले थे अब तक जिस राह पर
वही राह दिखाई थी उन्हें हमने
जिन उसूलो का दामन थामा था
हमने वही थे आजतक हमारे अपने
रोशी
1 टिप्पणी:
अमृत घुट्टी है माँ की सीख ।
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