अफगानी औरतें
अफगानिस्तान की सरजमीं पर बची हुई बेबस औरतें
जिनको छोड़ गए दोज़ख में मरने को ,बेसहारा और रोते- रोते
जिनका बेनूर ,मासूम चेहरा ,आँखों में दहशत बयां करती उनका दर्द
अंजान सा जिनका मुस्तकबिल ,हर सांस घुटती ,और डर से होता चेहरा सर्द
मासूम कलियाँ जो खिलने से पहले ही नोच डालीं ,,किरच -किरच होता उनका बचपन ...
चड़ गया आतंक की बलि,आततायीऔं से बचाने को परेशान माँ का सारा जीवन
जहाज में होने को सवार सिर्फ मर्द ही दिख रहे थे हवाई- अड्डे पर ,ना दिखती थी कोई औरत
क्या मरने को छोड़ आए माँ -बहनों को ,और बचा ली सिर्फ अपनी जान
क्या होगा अगली नस्ल का जब औरत का ना रहेगा नामों- निशां
कुछ औरतों को अफगानी छोड़ भागे बचा कर अपनी -अपनी जान
बची नस्ल को रौंदा तालिबानीयुओ ने ,मानो मिटा देंगे नारी की आन
कुछ तो रहम करो और सोचो जब रहेगी ना औरत जात इस देश में
तो किस पर करोगे हकूमत ,और कहाँ से लाओगे आतंकी ?
क्योंकि नस्ल तो अपने हाथों से दफन करते जा रहे इस देश के वासी और आतंकी
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