यह दिल भी क्या चीज़ है खुदा ने बनाई ,
गहरी चोट भी झेल जाता है कमबख्त आराम सेपर हल्की सी ठेस से भी घायल हो जाता है बिन आवाज़ सेकिसी लम्हे इतरा उठता है बेवजह ,बिन मक़सद केसुन्न हो जाता है ,कभी कर्कश वाणी के तीरों सेनज़रें भी भाँप लेता है बड़ी जल्दी यह उठती अपनी ओरपीठ पीछे भी शायद इसको दिख जाता है चहुं ओरबेबजह खुश हो उठता है अक्सर बे -मकसद यू हीबैठे -बैठे डूब जाता है गम की गहराइयों मेंस्थिर रहने की शायद फितरत ही नहीं है इसकी ,बहुत जुगत की हमने भी सम्हालने की इसकोपर नाकामयाब ही रहे रोके रखने में सदेव इसको
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