बड़ा ही खूबसूरत और बेमिसाल लफ्ज है घर
जहां बसते हैं माँ -बाप ,बच्चे और बेइंतेहा प्यार
आपसी सौहाद्र,इज्ज़त होती है जिसकी बुनियाद
बेहतरीन परवरिश पाकर महका देती इसको औलाद
घर की ऊंची दीवारें आगोश में समेत लेतीं सांझे सुख-दुख
हवा का रुख कितना भी बदले ,घर सँजो लेता सारे सुख -दुख
देश -परदेस कंही सैर कर लो भूलती ना कभी इसकी छत
दीवारें भी पुकारती इसकी कहती अब चलो बस अपने घर
कुछ तो होता है जरूर घर की खुशबू ले आती अपनी ओर
बेशक हो चाहे टूटा छप्पर ,मकान या आलीशान बंगला या कुछ और
विधा होती सदेव सबकी एक समान ,हम खुद होते अपने घर के राजा
जहां चलती सिर्फ हमारी हुकूमत ,देखते अपने परिवार को फलता -फूलता
रोशी
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