शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

 


बड़ा ही खूबसूरत और बेमिसाल लफ्ज है घर
जहां बसते हैं माँ -बाप ,बच्चे और बेइंतेहा प्यार
आपसी सौहाद्र,इज्ज़त होती है जिसकी बुनियाद
बेहतरीन परवरिश पाकर महका देती इसको औलाद
घर की ऊंची दीवारें आगोश में समेत लेतीं सांझे सुख-दुख
हवा का रुख कितना भी बदले ,घर सँजो लेता सारे सुख -दुख
देश -परदेस कंही सैर कर लो भूलती ना कभी इसकी छत
दीवारें भी पुकारती इसकी कहती अब चलो बस अपने घर
कुछ तो होता है जरूर घर की खुशबू ले आती अपनी ओर
बेशक हो चाहे टूटा छप्पर ,मकान या आलीशान बंगला या कुछ और
विधा होती सदेव सबकी एक समान ,हम खुद होते अपने घर के राजा
जहां चलती सिर्फ हमारी हुकूमत ,देखते अपने परिवार को फलता -फूलता
रोशी

कोई टिप्पणी नहीं:

                                  दिनचर्या   सुबह उठकर ना जल्दी स्नान ना ही पूजा,व्यायाम और ना ही ध्यान   सुबह से मन है व्याकुल और परेशा...