मंगलवार, 16 अगस्त 2022

 बड़ती उम्र ,सर के सफ़ेद बाल दे जाते ढेरों अनुभव ज़िंदगी की बेहतरीन डगर पर

स्वतः आ जाती है अक्ल ,हंसी भी आती अक्सर अपने खुद के विगत फैसलों पर
बचपन में सुना करते थे बुजुर्गों को कहते ,बाल धूप में कदापि सफ़ेद नहीं होते
वक़्त खुद -बा-खुद खोल देता है बंद अक्ल के ताले ,जो जवानी में नहीं हैं खुलते
बचपन से लेकर बुडापे तक रोज़ मिलता है तजुर्बा नवीन जो किताबों में ना मिलते
गलतियाँ खुद सिखाती हैं नए अनुभव ,दूसरों से भी ढेरों तजुर्बे हैं नित -प्रति दिन मिलते
हम बांटते हैं इनको अपनी नयी पीड़ी को ,जो उनको किसी किताब में नहीं मिलते
रोशी --
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