सोमवार, 22 नवंबर 2010

जीवन की राह

कभी कभी जीवन में आ जाते हैं
अचानक ऐसे मोड़
जहाँ पर आप, सिर्फ आप
रह जाते हैं अकेले
घर, परिवार, पिता, बहन सब है आसपास
पर मन है निशब्द, मौन और है मद्विम साँस
भीड़ से दूर, एकांत, शांत, अकेलापन
है पत्तियों की सरसराहट, झींगुरो की आहट
मन को हैं सब यही कुछ लुभाते, बहलाते
और मै इन सबको अपने बीच में पाकर
हूँ अत्यंत खुश और यही है मन लुभाते
कियूँ की यह सब साथ ही हैं जख्मो को सहलाते
फूल, पल्लव, हरियाली यही है मेरा जीवन
नित नव जीवन, यही देता है 'साकेत' का घर आँगन .......

1 टिप्पणी:

संजय भास्‍कर ने कहा…

लाजवाब...प्रशंशा के लिए उपयुक्त कद्दावर शब्द कहीं से मिल गए तो दुबारा आता हूँ...अभी
मेरी डिक्शनरी के सारे शब्द तो बौने लग रहे हैं...

                                  दिनचर्या   सुबह उठकर ना जल्दी स्नान ना ही पूजा,व्यायाम और ना ही ध्यान   सुबह से मन है व्याकुल और परेशा...